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________________ १२६] परिशिष्ट बात बताई। राक्षस ने उसे छोड़ दिया। वह वहां से चलकर बागवान के पास आई। बागवान ने उसे आश्चर्य से देखा और पूछा-अरे यहां क्यों आई हो ? उसने कहा-अपनी शर्त को पूरा करने के लिए मैं आई हूं। बागवान् बोला—क्या पति ने तुझे यहां आने की आज्ञा दे दी ? कैसे दी ? उसने अपनी सारी रामकथा सुनाई। बागवान् ने सोचा-'ओह ! यह सत्य-प्रतिज्ञ है। इतने सारे व्यक्तियों ने इसे छोड़ दिया तो मैं फिर इसे कैसे दृषित करूं।' यह विचार कर उसने उसे छोड़ दिया। वहां से लौटकर वह राक्षस और चोरों के बीच से आई। पर सभी ने उसे मुक्त कर दिया। वह अपने पति के पास सुरक्षित आ पहुंची।' अभय ने उन श्रोताओं से पूछा-आपने पूरी कहानी सुन ली। अब आप बताएं की कहानी के पात्रों में किस पात्र ने दुष्कर कार्य किया ? यह सुनकर उस एकत्रित भीड़ में उपस्थित ईर्ष्यालु व्यक्तियों ने कहा—उस लड़की के पति ने दुष्कर कार्य किया। भूखे व्यक्तियों ने राक्षस को, कामुक मनुष्यों ने बागवान् को और चांडाल ने चोर को दुष्कर कार्य करने वाला बताया। अभय ने उस चांडाल को चोर समझकर पकड़ लिया और उसे राजा के समक्ष उपस्थित किया। चोर ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और यह भी बता दिया कि उसने चोरी कैसे की। राजा ने कहा-'मातंग ! यदि तू मुझे ये दोनों विद्याएं सिखा देगा तो तुझे जीवनदान मिलेगा अन्यथा मृत्यु का वरण करना होगा।' मातंग ने विद्या देना स्वीकार कर लिया। राजा सिंहासन पर बैठा। मातंग नीचे जमीन पर बैठ गया। विद्या का ग्रहण न होने पर राजा ने इसका कारण पूछा। मातंग बोला--राजन् ! अविनय से विद्या गृहीत नहीं होती। तुम ऊपर बैठे हो और मैं विद्या-दाता नीचे, यह अविनय है। तब राजा तत्काल सिंहासन को छोड़कर नीचे बैठा और मातंग को ऊंचे आसन पर बिठाया। विद्याएं सिद्ध हो गईं। (गा. ६३ टी.प.२४, २५) ७. भक्ति और बहुमान एक गिरि-कंदरा में शिव की मूर्ति थी। एक ब्राह्मण और एक भील-दोनों उसकी पूजा-अर्चा करते थे। ब्राह्मण प्रतिदिन स्नान आदि कर, पवित्र होकर अर्चना करता था। अर्चना के पश्चात् वह शिव के सम्मुख बैठकर शिवजी का स्तुति-पाठ कर चला जाता। उसमें शिव के प्रति विनय था, बहुमान नहीं। बह भील शिव के प्रति बहुमान रखता था। वह प्रतिदिन मुंह में पानी भर लाता और उससे शिव को स्नान करा, प्रणाम कर वहीं बैठ जाता। शिव प्रतिदिन उसके साथ बातचीत करते। एक बार ब्राह्मण ने दोनों का आलाप-संलाप सुन लिया। उसने शिव की पूजा कर उपालंभ भरे शब्दों में कहा- तुम भी व्यन्तर शिव हो, जो ऐसे गंदे व्यक्ति के साथ आलाप-संलाप करते हो। तब शिव ने ब्राह्मण से कहा-'भील में मेरे प्रति बहुमान-आंतरिक प्रीति है, वह तुम्हारे में नहीं है।' एक बार शिव ने अपनी आंखें निकाल लीं। ब्राह्मण अर्चा करने गया। वह शिव के आंखें न देखकर रोने लगा और उदास होकर वहीं बैठ गया। इतने में ही भील आ पहुंचा। शिव की आंखें न देखकर उसने तीर से अपनी दोनों आंखें निकाल कर शिव के लगा दी। ब्राह्मण ने यह देखा। उसे शिव की बात पर पूरा विश्वास हो गया कि भील में बहुमान का अतिरेक है। (गा. ६३ टी. प.२५) ८. ज्ञानान्तराय एक बहश्रृत आचार्य थे। वे अपने शिष्यों को वाचना देते-देते परिश्रान्त हो गए। वे स्वाध्याय-काल को अस्वाध्याय-काल कहने लगे। इस प्रक्रिया से उनके ज्ञानान्तराय कर्म का बंध हुआ। वे मरकर देवलोक में उत्पन्न हुए। वहां से च्युत होकर वे एक अहीर के कुल में उत्पन्न हुए। उनका यौवन अवस्था में विवाह हुआ। वे भोग भोगने लगे। उनके एक कन्या उत्पन्न हुई। वह अत्यन्त रूपवती थी। एक बार वे दोनों पिता-पुत्री अपने पशु धन को लेकर अन्यत्र जा रहे थे। वे शकट में सवार थे। गांव के अन्यान्य लोग भी अपने-अपने शकट में थे। पुत्री अपने शकट के अगले सिरे पर बैठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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