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परिशिष्ट-८
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मुनि ने यह बात सुनी और सोचा---यह कालिक-श्रुत का स्वाध्याय-काल नहीं है। आधी रात बीत चुकी है। मुनि ने प्रायश्चित्त स्वरूप 'मिच्छा मि दुक्कडं' का उच्चारण किया। देवता बोला—फिर ऐसा मत करना, अन्यथा तुम तुच्छ देवता से ठगे जाओगे। अच्छा है. स्वाध्याय-काल में ही स्वाध्याय करो न कि अस्वाध्याय-काल में। (गा. ६३ टी.प.२४) ५. एक खंभे का प्रासाद
राजगृह नगर। महाराजा श्रेणिक। महारानी ने एक बार कहा---'राजन् ! मेरे लिए एक खंभे वाला प्रासाद बनवाएं। राजा ने बढ़इयों को काष्ठ लाने का आदेश दिया। वे अभयकुमार के साथ काष्ठ के लिए वन में गए। वहां उन्होंने एक विशाल वक्ष देखा। वह वक्ष सभी लक्षणों से यक्त और सीधा था। उन्होंने वक्ष की धूप-दीप से पूजा कर, प्रार्थना के स्वरों में कहा—जो इस वृक्ष का अधिष्ठाता देव है, वह हमें दर्शन दे, अन्यथा हम इस वृक्ष को काट देंगे। तब अधिष्ठाता व्यन्तर देव अभयकुमार महामात्य के सामने प्रकट हुआ और बोला—'मैं महाराज श्रेणिक के लिए एक खंभे वाला प्रासाद निर्मित कर दूंगा। वह सभी ऋतुओं में सुखकारी और सभी प्रकार के साधनों से युक्त होगा। तुम लोग मेरे इस आवास-स्थान-वृक्ष को मत काटो। यह वृक्ष मेरे आवास के ऊपर चूलिका के समान है।' बढ़इयों ने वृक्ष नहीं काटा। उस व्यन्तर देव ने एक खंभे वाले प्रासाद का निर्माण कर दिया।
(गा. ६३ टी.प. २४, २५) ६. चोर की खोज
राजगृह नगर में एक चंडालिनी रहती थी। वह गर्भवती हुई। उसे आम खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। वह आम की ऋतू नहीं थी। उसने अपने पति से कहा- मुझे आम लाकर दो। पति बोला- यह समय आम का नहीं है। पली ने हठ किया तब वह चंडाल महाराज श्रेणिक के बगीचे के पास गया और 'अवनामिनी' विद्या का प्रयोग कर आम की शाखाओं को झुकाया, पांच-दस आम तोड़े और फिर उन्नामिनी विद्या का प्रयोग कर उन शाखाओं को पूर्ववत् ऊपर कर डाला । मातंगी का दोहद पूरा हुआ।
- प्रातःकाल राजा ने देखा कि आम्रवृक्ष से आम तोड़े हुए हैं। वहां वृक्ष के आस-पास किसी मनुष्य के पदचिह्न नहीं दीखे। राजा ने सोचा-कौन कैसे यहां आया? जिस व्यक्ति में ऐसी शक्ति है, वह कभी-न-कभी मेरे अन्तःपुर को भी क्निष्ट कर सकता है। राजा ने अभय को बुलाकर कहा- यदि सात दिनों की अवधि में चोर को पकड़कर मेरे सामने उपस्थित नहीं कर पाओगे तो तम्हें मौत की सजा दी जाएगी।
अभय चोर की खोज में निकला। एक स्थान पर एक नट अपने करतब दिखाने के लिए तत्पर हो रहा था। वहां लोगों की भीड एकत्रित थी। अभय वहां पहंचा और लोगों से बोला---'भाइयो ! जब तक यह नट सज-धज कर आता है तब तक मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं, आप उसे सुनें ।
एक नगर में एक सेठ रहता था। वह अत्यंत दरिद्र था। उसकी एक रूपवती विवाह योग्य कन्या थी। वह कन्या अच्छे वर की प्राप्ति के लिए कामदेव की अर्चा-पूजा करती थी। एक दिन वह पूजा के निमित्त फूलों की प्राप्ति के लिए बगीचे में गई और चोरी-चोरी फूल चुनने लगी। बागवान ने उसे देख लिया। वह कन्या के साथ दुर्व्यवहार करने लगा। कन्या बोली—मैं कुंआरी हूं। मेरे साथ ऐसा मत करो। तुम्हारे घर पर भी बहिनें, बेटियां होंगी।' वह बागवान् बोला-एक शर्त पर मैं तझे छोड़ सकता है। वह शर्त यह है कि जब तेरा विवाह हो, उसी दिन पति के पास जा आएगी। लड़की ने यह शर्त स्वीकार कर ली। बागवान् ने उसे तत्काल मुक्त कर दिया। कालान्तर में लड़की का विवाह हो गया।
सुहागरात । विवाह की पहली रात्रि। वह पति के कक्ष में गई और हाथ जोड़कर विवाह से पूर्व स्वीकृत शर्त की जानकारी दी। पति ने उसे शर्त पूरी करने की आज्ञा दे दी। वह अपने घर से बागवान् से मिलने निकली। रास्ते में चोरों ने उसे घेर लिया। उसने अपनी बात कही। चोरों ने भी उसे छोड़ दिया। वह आगे चली। एक राक्षस मिला। वह छह महीनों से भूखा था। वह छह महीनों में एक ही बार खाता था। उसने उस नवोढ़ा को पकड़ लिया। नवोढ़ा ने अपनी पूरी
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