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व्यवहार भाष्य : एक अनुशीलन
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गए हुए मुनि क्षेत्र की प्रत्युप्रेक्षणा कर आचार्य के पास आकर क्षेत्र के गुण-दोष बताते हैं। उस गच्छ में अन्य गच्छ से आये हुए मुनि क्षेत्र की प्रत्युप्रेक्षणा सुनकर अपने आचार्य के पास जाकर क्षेत्र विषयक सारी बात बताते हैं तथा आचार्य को उस क्षेत्र में ले जाते हैं तो वे प्रायश्चित्तभाक् होते हैं। उनको स्वयं क्षेत्र की प्रत्युप्रेक्षणा करके आना चाहिए।
क्षेत्र-प्रत्युप्रेक्षक क्षेत्र की जानकारी विधिपूर्वक करते हैं। क्षेत्र के तीन प्रकार हैंजघन्य क्षेत्र- (१) भिक्षा-परिभ्रमण भूमि विशाल हो।
(२) उत्सर्ग की सुविधा हो। (३) भिक्षा सुलभ हो।
(४) वसति सुलभ हो। उत्कृष्ट क्षेत्र-तेरह गुणों से अन्वित क्षेत्र उत्कृष्ट क्षेत्र कहलाता है
(१) पंक-बहुल न हो। (२) सम्मूछिम जीवों का उपद्रव न हो। (३) स्थंडिल भूमि एकान्त में हो। (४) चारों दिशाओं में महास्थंडिल भूमि हो। (५) गोरस की प्रचुरता हो। (६) जहां की जनता प्रायः भद्रक हो। (७औषध सुलभ हो। (६) अन्नभण्डार प्रचुर हों। (६) जहां का राजा भद्र पुरुष हो। (१०) जहां वैद्य भद्रक हों। (११) जहां अन्यतीर्थिक अकलहकारी हों। (१२) भिक्षा सुलभ हो। तीसरे प्रहर में पर्याप्त भिक्षा मिलती हो। अन्य पौरुषियों में भी वह प्राप्त हो।
(१३) वसति में या अन्यत्र भी स्वाध्याय की सुलभता हो। मध्यम क्षेत्र-जघन्य और उत्कृष्ट क्षेत्र से मध्यम गुणों वाला क्षेत्र मध्यम क्षेत्र कहलाता है।
क्षेत्र प्रत्युप्रेक्षणा के लिए अनेक गच्छों से अनेक मुनि गए हों और सभी एक ही स्थान की अभिलाषा रखते हों ऐसी स्थिति में अनेक विधियों का विवरण भाष्य तथा वृत्ति में प्राप्त है। वहां कौन रहे, कौन न रहे, कैसे रहे आदि की विधियां सुनिश्चित हैं। उदाहरण स्वरूप दो वर्ग हैं-एक वृषभ का और एक आचार्य का। यदि वह क्षेत्र दोनों वर्गो के लिए पर्याप्त है तो दोनों वर्ग वहां रहें। यदि ऐसा न हो तो वृषभ का वर्ग वहां से विहार कर दे, आचार्य का वर्ग रहे। यदि दोनों वर्ग तुल्य हों-दोनों गणी हों या दोनों आचार्य हों तो यह पद्धति विहित है-एक का शिष्य परिवार निष्पन्न है और एक का निष्पन्न नहीं है तो निष्पन्न शिष्य परिवार वाला वहां से विहार कर दे और अनिष्पन्न वाला वहां रहे। यदि दोनों का निष्पन्न परिवार हो तो तरुण शिष्य वाला चला जाए, वृद्ध वाला वहां रहे। दोनों तरुण या वृद्ध परिवार वाले हों तो शैक्ष परिवार वाला रहे, चिरप्रव्रजित परिवार वाला चला जाए। यदि दोनों समान हों तो जुंगित परिवार वाला रहे, अजुंगित परिवार वाला चला जाए। दोनों मुंगित परिवार वाले हों तो जो पादनुंगित हैं वे ठहरें, दूसरे चले जाएं।
इसी प्रकार साध्वी वर्ग की भी मार्गणा होती है। भाष्यकार ने क्षेत्र विषयक और भी अनेक बातों का वर्णन किया है।
१. व्यभा.३८६१-६४| २. वही ३८६७-६६1 ३. बही ३६१६-१८॥ ४. व्यभा.३६१६-५७।
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