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व्यवहार भाष्य : एक अनुशीलन
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भाष्यकार ने संक्षिप्त में कथा का संकेत किया है किन्तु उन्होंने पूरी कथा का विस्तार दिया है। बिना टीका के उन कथाओं को समझना आज अत्यन्त कठिन होता। टीका में उन्होंने किसी विषय की पुष्टि में अन्य ग्रंथों के उद्धरण भी दिए हैं, जो उनकी बहुश्रुतता के द्योतक हैं।
आचार्य मलयगिरि द्वारा विरचित नंदी, राजप्रश्नीय आदि २५ टीका ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। कर्म प्रकृति, सूर्यप्रज्ञप्ति, ज्योतिष्करण्डक आदि की टीका के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वे केवल आगमों के ही नहीं वरन् गणितशास्त्र, दर्शनशास्त्र एवं कर्मसिद्धान्त के भी गहरे विद्वान् थे। कहा जा सकता है कि टीकाकारों में इनका स्थान प्रथम है।
व्यवहार
व्यवहार शब्द अनेक अर्थों में प्रचलित है। संस्कृत कोशों में व्यवहार शब्द विवाद अर्थ में प्रयुक्त है। लौकिक दृष्टि से व्यवहार शब्द आचरण के अर्थ में अधिक प्रयुक्त होता है। व्यवहार शब्द व्यापार के लिए भी प्रयुक्त होता है। मनुस्मृति में व्यवहार शब्द मुकदमे के अर्थ में प्रयुक्त है। विशेषावश्यक भाष्य में नय के प्रसंग में व्यवहार शब्द के निम्न अर्थों का उल्लेख है-१. प्रवृत्ति २. प्रवृत्तिकर्ता ३. जिससे सामान्य का निराकरण किया जाए ४. सामान्य लोगों द्वारा आचरित ५. सब द्रव्यों के अर्थ का विनिश्चय। आचार्य मलयगिरि ने व्यवहार के तीन एकार्थकों का उल्लेख किया है, जिससे व्यवहार शब्द का अर्थ आचार फलित होता है।
व्यवहार शब्द भिन्न-भिन्न प्रसंगों में भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। दशवैकालिक नियुक्ति में आक्षेपणी कथा के चार भेदों में दूसरी कथा का नाम व्यवहार आक्षेपणी है। सत्य के दस भेदों में एक नाम व्यवहार सत्य है। राशि के दो प्रकारों में एक नाम व्यवहार राशि है। गणित के दस भेदों में एक भेद व्यवहार है, जिसे पाटी गणित भी कहते हैं। समयसार में नय की प्ररूपणा में व्यवहार शब्द का अर्थ अभूतार्थ-अयथार्थ किया है।
कात्यायन ने व्यवहार शब्द के तीन घटकों का अर्थ इस प्रकार किया है-वि+ अव + हार अर्थात् जो नाना प्रकार से संदेहों का हरण करता है, वह व्यवहार है। प्राकृत में वव+ हार इन दो शब्दों से व्यवहार की निष्पत्ति मानी गयी है। ग्रंथकार ने अनेक रूपों में व्यवहार शब्द को व्याख्यायित किया है
दो व्यक्तियों में विवाद होने पर जो वस्त जिसकी नहीं है, उससे वह वस्तु लेकर जिसकी वह वस्तु है, उसे देना व्यवहार है। मनुस्मृति की मिताक्षरा टीका में भी व्यवहार शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त है।
• 'विविहं वा विहिणा वा, ववणं हरणं च ववहारो' अर्थात् विविध प्रकार से विधिपूर्वक अतिचारहरण हेतु तप, अनुष्ठान आदि का वपन/दान करना व्यवहार है। १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ३ पृ. ३८७। २. बृहद् हिंदी कोश पृ. १०६८, शब्दकल्पद्रुम भाग ४ पृ. ५३४-४३ । ३. अमरकोश- १/६,अभिधान.२/१७६। ४. सूत्रकृतांग १/३/२५ : हिरण्णं ववहाराइ, तं पि दाहामु ते वयं। मनुस्मृति ७१३७। ५. मनुस्मृति ८१। ६. विभा.२२१२ महेटी-पृ. ४५३ । ७. व्यभा. १५२ टी. प. ५१ : कल्पो व्यवहार आचार इत्यनर्थान्तरम् । ८ दशनि. १६७। ६. अभयदेवसूरि के अनुसार जिसमें व्यवहार प्रायश्चित्त का निरूपण हो, वह व्यवहार आक्षेपणी है। (देखें ठाणं ४/२४७ स्थाटी प. २००), कुछ आचार्यों ने
व्यवहार शब्द को ग्रंथ विशेष का द्योतक भी माना है (स्थाटी. प. २००)। १०. ठाणं १०/८६ ११. ठाण १०/१००1 १२. समयसार गा. १३। १३. कात्यायन; वि नानार्थेऽव संदेहे, हरणं हार उच्यते।
नानासंदेहहरणाद्, व्यवहार इति स्थितिः ॥ १४. व्यभा.५, बृभापी. पृ. ४; यस्य नाभवति तस्य हापयति, यस्याभवति तस्मै ददाति इति व्यवहारः । १५. मनुस्मृति मिताक्षरा। परस्परं मनुष्याणां, स्वार्थविप्रतिपत्तिषु । वाक्यान्न्यायाद्यवस्थानं, व्यवहार उदाहतः।। १६. व्यभा ३, उशांटी प ६४: व्यवहारः प्रमादात् स्खलितादौ प्रायश्चित्तदानरूपआचरणम्।
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