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व्यवहार भाष्य : एक अनुशीलन
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भाष्य में वर्णित विषयवस्तु, मुद्राएं, घटना प्रसंग एवं सांस्कृतिक तथ्य भी इसके रचनाकाल को चौथी-पांचवीं शताब्दी से पूर्व या आगे का सिद्ध नहीं करते। अतः भाष्यकार का समय विक्रम की चौथी-पांचवीं शताब्दी होना चाहिए।
अन्य ग्रंथों पर प्रभाव
व्यवहार एवं उसके भाष्य में वर्णित विषय अन्य ग्रन्थों में भी संक्रान्त हुए हैं। व्यवहार के भेद, पुरुषों के प्रकार एवं आलोचना से सम्बन्धित अनेक प्रकरण ठाणं एवं भगवती में प्राप्त होते हैं। ये सभी प्रकरण आगम-संकलन काल में व्यवहार से संग्रहीत किए गए हैं, ऐसा प्रतीत होता है।
___ व्यवहारभाष्य की अनेक गाथाएं दिगम्बर ग्रंथों में भी संक्रान्त हुई हैं। भगवती आराधना एवं मूलाचार में व्यवहार भाष्य की अनेक गाथाएं शब्दशः मिलती हैं। विद्वानों ने भगवती आराधना एवं मूलाचार को संकलित रचना के रूप में स्वीकार किया है। इसमें नियुक्तिसाहित्य एवं भाष्यसाहित्य की अनेक गाथाएं संक्रान्त हैं। आलोचना एवं प्रायश्चित्त की अनेक गाथाएं स्पष्टतः व्यवहारभाष्य से इन ग्रंथों में संकलित की गई हैं। मात्र उन गाथाओं में भाषा की दृष्टि से शौरसेनी का प्रभाव दृष्टिगत होता है। ठाणं, भगवती एवं भगवती आराधना के कुछ तुलनात्मक उद्धरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं
व्यभा
भग.
भआ
ठाणं ५/२११, २१२
१६८
४७१
२२६ ३०८ ५२० ५२१, ५२२
४१६
८/१८ ८/१८, १०/७१ १०/७०
२५/५५४ २५/५५३ २५/५५२
५२३
५६४ ४५३
५/१४६
५६६ ५६६ १७२४, ४२५२ ४०६५ ४१८०-८३ ४१८४
४३१ ६१६, ६२०
१०/७३, ८२० ५/१८४
२५/२७८
४२६६
५३०
४२६८
५२७
४२६६
५४६
४११
४३०१ ४३१२ ४३१३ ४५६-७ ४५७१, ४५७२ ४५७३, ४५७ 889
४/४१४ ४/४१५,४१६ ४/४१७ ४/४१८
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