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________________ व्यवहार भाष्य : एक अनुशीलन [४१ गाथाएं लिखते हैं लेकिन अधिकांश निक्षेपपरक गाथाएं नियुक्ति की हैं अतः नियुक्तिविस्तरः, नियुक्तिकृद् आदि का उल्लेख न होने पर भी निक्षेपपरक गाथाओं को हमने प्रायः नियुक्ति की माना है। विशेषावश्यक भाष्य में स्पष्ट लिखा है कि नियुक्ति का विषय नाम आदि का निक्षेप करना है, शेष अर्थ का विचार करना नहीं।' ग्रंथकर्ता द्वारा मूल निक्षेप का उल्लेख करने के बाद द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि की व्याख्या नियुक्तिकार एवं भाष्यकार दोनों की हो सकती है। अनेक स्थलों पर स्वयं निर्यक्तिकार भी द्रव्य, क्षेत्र आदि की व्याख्या करते हैं, जैसे-दशवकालिक निर्यक्ति में द्रव्यमंगल, भावमंगल आदि। भाष्य नियुक्ति की व्याख्या है, अतः संभव है कि कहीं-कहीं द्रव्य, क्षेत्र आदि की विस्तृत व्याख्या भाष्यकार ने भी की हो। जैसे व्यवहारभाष्य में टीकाकार कहते हैं-'व्यासार्थं तु भाष्यकृद् विवक्षुः इच्छानिक्षेपमाह'-इस उल्लेख से स्पष्ट है कि यहां भाष्यकार ने निक्षेप योजना की है। १२. मूल सूत्र में आए शब्द के एकार्थक लिखना नियुक्तिकार की भाषागत विशेषता है। यदि प्रारम्भिक गाथाओं में सत्रगत शब्द के एकार्थक हैं तथा विषय की क्रमबद्धता है तो हमने उस गाथा को निगा के क्रम में रखा है, जैसे व्यभा ६ (नि ३)। १३. एक सूत्र की दूसरे सूत्र के साथ तथा एक उद्देशक की दूसरे उद्देशक के साथ सम्बन्ध द्योतित करने वाली गाथाएं नियुक्तिकार की हैं? भाष्यकार की हैं? व्याख्याकारों की हैं? अथवा अन्य आचार्य की? इसका निर्णय करना अत्यन्त जटिल है क्योंकि इस सम्बन्ध में अनेक विप्रतिपत्तियां हैं • व्यभा में प्रथम उद्देशक के सूत्रों में सम्बन्ध गाथाएं नहीं हैं इससे स्पष्ट है कि ये बाद में जोड़ी गयी हैं। • निभा १८६५वीं गाथा की उत्थानिका में भद्रबाहु सूत्र-सम्बन्ध की गाथा लिखते हैं, ऐसा उल्लेख मिलता है। • व्यभा १२६८वीं गाथा के पूर्व 'व्यासार्थं तु भाष्यकृद् विवक्षुः प्रथमतः पूर्वसूत्रेण सह सम्बन्धमाह' का उल्लेख मिलता है। ये तीनों उल्लेख विमर्शनीय हैं। अधिकांश स्थलों पर सूत्र-सम्बन्ध की गाथा के बारे में व्याख्याकारों ने कोई जानकारी न देकर तुरंत बाद 'अथ भाष्यम्' 'अथ नियुक्तिविस्तरः' या 'इमा निजुत्ती' का उल्लेख किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सूत्र सम्बन्ध की गाथाएं संभवतः व्याख्याकारों ने बनाई हैं। इसका एक सशक्त प्रमाण यह भी है कि निशीथ, बृहत्कल्प एवं व्यवहार की सैकड़ों गाथाएं आपस में संवादी हैं। पर सूत्र-सम्बन्ध की गाथाएं आपस में नहीं मिलतीं। केवल बृहत्कल्प एवं व्यवहार में कुछ गाथाएं समान हैं क्योंकि इन दोनों भाष्यों के कर्ता एक ही हैं। ऐसा संभव लगता है कि भाष्यकार अथवा व्याख्याकार ने एक सूत्र से दूसरे सूत्र के साथ सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी ये गाथाएं नियुक्ति की प्रतीत नहीं होती क्योंकि नियुक्ति की शैली अत्यन्त संक्षिप्त है। वे किसी भी विषय का इतना विस्तृत वर्णन नहीं करते। यदि सम्बन्ध-सूत्र की गाथाओं को छेदसूत्रों की नियुक्तियों के साथ जोड़ दिया जाए तो इनका कलेवर बहुत बड़ा हो जाएगा क्योंकि कहीं-कहीं सम्बन्ध-सूत्र के रूप में दो या तीन गाथाएं भी एक साथ मिलती हैं। १४. व्यवहार टीका में अनेक स्थलों पर मलयगिरि 'अधुना नियुक्तिभाष्यविस्तरः' अथवा 'अधुना भाष्यनियुक्तिविस्तरः' का उल्लेख करते हैं। लेकिन वहां यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि पहले निगा है या भागा है। क्योंकि अनेक स्थलों पर विषमपदों की व्याख्या पहले भाष्यकार भी करते हैं, जैसे-व्यभा (१४७८,१४७६)। जहां 'नियुक्तिभाष्यविस्तरः' का उल्लेख है, वहां हमने पहले नियुक्ति की गाथा का चयन किया है और कहां तक नियुक्ति गाथाएं हैं इसका निर्णय अनुमान प्रमाण, व्याख्या के पूर्वापरत्व तथा विषय की क्रमबद्धता के आधार पर किया है। जैसे-व्यभा ६१६, १२३६ आदि। जहां भाष्यनियुक्तिविस्तरः का उल्लेख है वहां हमने पहले भाष्य और फिर नियुक्ति गाथा को स्वीकार किया है। जैसे व्यभा में २०३२वीं गाथा के प्रारम्भ में 'भाष्यनियुक्तिविस्तरः का उल्लेख है लेकिन नियुक्ति की गाथा २०३८ से है। १५. नियुक्तिगाथाएं प्रायः अध्ययन एवं उद्देशक के तत्काल बाद आती हैं, जैसे-आचारांग, सूत्रकृतांग आदि की नियुक्तिगाथाएं। पर भाष्यमिश्रित इन नियुक्तियों में प्रायः ऐसा क्रम नहीं मिलता। इस बारे में ऐसा अधिक संभव लगता है कि विषय की संबद्धता १. विभास्वोटी. ६६१। २. निभा-१८६५ चू. पृ. ३०६ : इदानीं उद्देसकस्स उद्देसकेन सह संबंधं वक्तुकामो आचार्यः भद्रबाहुस्वामी नियुक्तिगाथामाह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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