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________________ व्यवहार भाष्य छेदसूत्रों का नामकरण नंदी में व्यवहार, बृहत्कल्प आदि ग्रंथों को कालिकश्रुत के अन्तर्गत रखा है। गोम्मटसार धवला एवं तत्त्वार्थसूत्र में व्यवहार आदि ग्रंथों को अंगबाह्य में समाविष्ट किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब भद्रबाहु ने निहण किया तब तक संभवतः छेदग्रंथ जैसा विभाग इन ग्रंथों के लिए नहीं हुआ था। बाद में इन ग्रंथों को विशेष महत्त्व देने हेतु इनको एक नवीन वर्गीकरण के अन्तर्गत समाविष्ट कर दिया गया। फिर भी 'छेदसूत्र' नाम कैसे प्रचलित हुआ इसका कोई पुष्ट प्रमाण प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता। छेदसूत्र का सबसे प्राचीन उल्लेख आवश्यकनियुक्ति में मिलता है। विद्वानों ने अनुमान के आधार पर इसके नामकरण की यौक्तिकता पर अनेक हेतु प्रस्तुत किए हैं। छेदसूत्रों के नामकरण के बारे में निम्न विकल्पों को प्रस्तुत किया जा सकता है . शूबिंग के अनुसार प्रायश्चित्त के दस भेदों में 'छेद' और 'मूल' के आधार पर आगमों का वर्गीकरण 'छेद' और 'मूल' के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इस अनुमान की कसौटी में छेदसूत्र तो विषय-वस्तु की दृष्टि से खरे उतरते हैं। लेकिन वर्तमान में उपलब्ध मूलसूत्रों की 'मूल' प्रायश्चित्त से कोई संगति नहीं बैठती। . सामायिक चारित्र स्वल्पकालिक है अतः प्रायश्चित्त का संबंध छेदोपस्थापनीय चारित्र से अधिक है। छेदसूत्र तत् चारित्र सम्बन्धी प्रायश्चित्त का विधान करते हैं, संभवतः इसीलिए इनका नाम 'छेदसूत्र' पड़ा होगा। .दिगंबर ग्रंथ 'छेदपिंड' में प्रायश्चित्त के आठ पर्यायवाची नाम हैं। उनमें एक नाम 'छेद' है। श्वेताम्बर परम्परा में प्रायश्चित्त के दस भेदों में सातवां प्रायश्चित्त 'छेद' है। अंतिम तीन प्रायश्चित्त साधुवेश से मुक्त होकर वहन किये जाते हैं। लेकिन श्रमण पर्याय में होने वाला अंतिम प्रायश्चित्त 'छेद' है। स्खलना होने पर जो चारित्र के छेद-काटने का विधान करते हैं, वे ग्रंथ छेदसूत्र हैं। . आवश्यक की मलयगिरि टीका में सामाचारी के प्रकरण में छेदसूत्रों के लिए पदविभाग सामाचारी शब्द का प्रयोग मिलता है। पदविभाग और छेद ये दोनों शब्द एक ही अर्थ के द्योतक हैं। .छेदसूत्र में सभी सूत्र स्वतंत्र हैं। एक सूत्र का दूसरे सूत्र के साथ विशेष संबंध नहीं है तथा व्याख्या भी छेद या विभाग दृष्टि से की गई है। इसलिए भी इनको छेदसूत्र कहा जा सकता है। ___नामकरण के बारे में आचार्य तुलसी (वर्तमान गणाधिपति तुलसी) ने एक नई कल्पना प्रस्तुत की है- “छेदसूत्र को उत्तमश्रुत माना है। 'उत्तम श्रुत' शब्द पर विचार करते समय एक कल्पना होती है कि जिसे हम 'छेयसुत्त' मानते हैं वह कहीं 'छेकश्रुत तो नहीं है? छेकश्रुत अर्थात् कल्याण श्रुत या उत्तम श्रुत। दशाश्रुतस्कन्ध को छेदसूत्र का मुख्य ग्रंथ माना गया है। इससे 'छेयसुत्त' का 'छेकसूत्र' होना अस्वाभाविक नहीं लगता। दशवकालिक (४/११) में 'जं छेयं तं समायरे' पद प्राप्त है। इससे 'छेय' शब्द के 'छेक' होने की पुष्टि होती है।" .जिससे नियमों में बाधा न आती हो तथा निर्मलता की वृद्धि होती हो, उसे छेद कहते हैं। पंचवस्तु की टीका में हरिभद्र द्वारा किए गए इस अर्थ के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि जो ग्रंथ निर्मलता एवं पवित्रता के वाहक हैं, वे. छेदसूत्र हैं। अतः इन ग्रंथों का छेद नामकरण सार्थक लगता है। १. गोजी.गा. ३६७, ३६८ । २. धवला पु. १ पृ. ६६। ३. त. २/२०॥ ४. आवनि.७७७। ५. कल्पसूत्र भू. पृ.८। ६. आवनि. ६६५ मटी- पृ. ३४१ : पदविभागसामाचारीछेदसूत्राणि। ७. दश्रुचू. पृ. २; इमं पुण छेयसुत्तपमुहभूतं । ८. निसी. भूमिका पृ. ३, ४। ६. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा. २ पृ. ३०६; बज्झाणुट्टाणेणं, जेण ण बाहिज्जए तयं णियमा। संभवइ य परिसुद्धं, सो पुण धम्मम्मि छेउ ति॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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