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व्यवहार भाष्य
ना
ने इसकी प्रतिलिपि में अपना समय लगाया है। प्रकाशन व्यवस्था में कुशलराजजी समदड़ियाजी की कार्यशीलता एवं कार्यप्रतिबद्धता भी इस कार्य को निष्ठा तक पंहुचाने में उपयोगी रही है।
ज्ञात-अज्ञात, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिन-जिनका सहयोग इस कार्य की सम्पूर्ति में मिला है, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना मात्र उपचार होगा। हम सब एक डोर में बंधे हैं अतः संविभाग हमारा आत्मधर्म है। सबके सहयोग की स्मृति करते हुए मुझे अत्यन्त आत्मिक आह्लाद की अनुभूति हो रही है। मैं उन सबके प्रति अपनी मंगल भावना प्रस्तुत कर सबके आत्मोत्थान की कामना करती हूं।
समणी कुसुमप्रज्ञा
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