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________________ २६ ] व्यवहार भाष्य २. आगम शब्दकोश-अंगसुत्ताणि के तीनों भागों की समग्र शब्द-सूची। ३. नवसुत्ताणि-चार मूल, चार छेद तथा आवश्यक। ४. उवंगसुत्ताणि (खंड-१)-प्रथम तीन उपांग। ५. उवंगसुत्ताणि (खंड-२)-शेष नौ उपांग। निम्न आगम मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद तथा विश्लेषणात्मक टिप्पणों से युक्त प्रकाशित हुए हैं६. दसवेआलियं ७. आयारो ८. ठाणं ६. समवाओ १०. सूयगडो भाग-१ ११. सूयगडो भाग-२ १२. उत्तरज्झयणाणि भाग-१ १३. उत्तरज्झयणाणि भाग-२ १४. आचारांगभाष्यम् १५. भगवतीभाष्यम् (दो शतक) १६. गाथा कोश साहित्य १. एकार्थककोश २. निरुक्तकोश ३. देशीशब्दकोश ४. आगम वनस्पति कोश प्रस्तुत ग्रंथ सम्पादन का इतिहास आज से १७ साल पूर्व महावीर जयंती के अवसर पर पूज्य गुरुदेव एवं युवाचार्य महाप्रज्ञजी (वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञ) की सन्निधि में पारमार्थिक शिक्षण संस्था की मुमुक्षु बहिनों की एक गोष्ठी आहूत की गयी। गोष्ठी के दौरान कुछ मुमुक्षु बहिनों को साध्वियों के निर्देशन में आगम कोश का कार्य करने का निर्देश मिला । लगभग १३ साल के पश्चात् कार्य में नियुक्त कुछ बहिनों की विलक्षण दीक्षा घोषित हो गयी। दीक्षित होने के बाद भी आगम कोश का कार्य तीव्रगति से चला। हजारों कार्ड बनाए पर वह कार्य कुछ कारणों से सफल नहीं हो सका। कार्य स्थगित हो गया पर इससे हमारा अनुभव वृद्धिंगत हुआ और उसके आलोक में अन्य कोशों की समायोजना की गई। उसमें मुख्य थे-एकार्थककोश, निरुक्तकोश एवं देशीशब्दकोश। म संवत २०४०। नाथद्वारा मर्यादा महोत्सव के बाद मुनि श्री दलहराजजी को आगम कार्य के लिए लाडनूं भेजा गया। उनके लाडनूं आगमन से साध्वियों एवं समणियों के कार्य में गति आ गई। उनके निर्देशन में उपर्युक्त तीन कोश प्रकाश में आ गए। एकार्थक कोश की सम्पन्नता पर आचार्यवर ने मुझे नियुक्तियों के संपादन कार्य का निर्देश दिया। नियुक्तियों का कार्य लगभग सम्पन्नता पर था। उस समय पूना में कलघटगे जी से मिलना हुआ। उनकी ओर से एक सुझाव आया कि प्रकाशित व्यवहारभाष्य बहुत अशुद्ध है यदि उसका सम्पादन हो जाये तो कोशनिर्माण एवं अन्यान्य शोधकार्य में बहुत सहयोग मिल सकता है। उनके इस सुझाव की ओर पूज्य गुरुदेव एवं आचार्यश्री ने ध्यान दिया और मुझे व्यवहार भाष्य के सम्पादन का निर्देश मिला। १. मुमुक्षु सरिता (समणी स्थितप्रज्ञा), मु. कुसुम (समणी कुसुमप्रज्ञा) मु. सविता (समणी स्मितप्रज्ञा, वर्तमान साध्वी विश्रुतविभा)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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