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व्यवहार भाष्य
व्यवहारभाष्य गाथानुक्रम
२. नियुक्ति-गाथानुक्रम ३. सूत्र से सम्बन्धित भाष्य गाथाओं का क्रम ४. टीका एवं भाष्य की गाथाओं का समीकरण ५. एकार्थक ६. निरुक्त ७. देशीशब्द ८ कथाएं ६. परिभाषाएं १०. उपमा ११. निक्षिप्तशब्द १२. सूक्त-सुभाषित १३. अन्य ग्रंथों से तुलना १४. आयुर्वेद और आरोग्य १५. कायोत्सर्ग एवं ध्यान के विकीर्ण तथ्य १६. दृष्टिवाद के विकीर्ण तथ्य १७. विशिष्ट विद्याएं १८ टीका में उद्धृत गाथाएं १६. विशेष नामानुक्रम २०. वर्गीकृत विशेष नामानुक्रम २१. टीका में संकेतित नियुक्तिस्थल २२. टीका में उद्धृत चूर्णि के संकेत २३. वर्गीकृत विषयानुक्रम
इन परिशिष्टों के साथ एक परिशिष्ट की कमी अखर रही है। यदि हम मूल ग्रंथ की अविकल शब्दसूची प्रस्तुत कर सकते तो शोध-विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी होती। इसकी आंशिक संपूर्ति परिशिष्ट नं. १६ एवं २० से हो सकेगी।
भाषा शैली ___आगमों की मूल भाषा अर्धमागधी है।' नियुक्तियां प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। इनमें अर्धमागधी एवं महाराष्ट्री का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। प्रस्तुत ग्रंथ में भाषागत अनेक वैशिष्ट्य देखे जा सकते हैं।
प्राकृत भाषा में निबद्ध होने पर भी भाष्यकार ने अनेक स्थलों पर संस्कृत से प्रभावित भाषा के प्रयोग भी किये हैं। व्याकरण की दृष्टि से निम्न उद्धरण महत्त्वपूर्ण हैं१. जद्द वि (४०५४)
३. पाहु (३७६७) २. अगुरोरवि (४६०१) ४. कासवसि (५३८)
ऐसे प्रयोग प्रायः सामान्य प्राकृत में नहीं मिलते। इनके स्थान पर 'जइ वि' 'अगुरु वि' तथा 'आह' पाठ मिलते हैं। ये प्रयोग संस्कृत के अधिक निकट हैं। ऐसे और भी अनेक प्रयोग भाष्य में यत्र-तत्र देखने को मिलते हैं।
१. सम ३४/२२ : भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ। २. कस्य त्वं असि-इन तीन शब्दों से कासवसि रूप बना है।
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