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संपादकीय
युग-परिवर्तन के साथ परिवेश भी बदलता है । युगीन समस्याएं, सामाजिक स्थितियां, प्रचलित मान्यताएं एवं तत्कालीन अवधारणाएं मानव जीवन को ही प्रभावित नहीं करतीं, तत्कालीन साहित्य की अनेक विधाओं में भी वे अभिव्यंजित होती रहती हैं। जिस साहित्य में सत्यं शिवं सुन्दरं का दर्शन होता है, उसमें त्रैकालिकता एवं सामयिकता - दोनों का पुट होता है। प्राचीन आगम एवं उनके व्याख्या साहित्य को इसी कोटि के साहित्य में रखा जा सकता है। हजारों वर्षों का अंतराल होने पर भी इनकी महत्ता और प्राणवत्ता में कोई अन्तर नहीं आया है
समय के बदलते पहरूए के साथ भाषा और शैली में परिवर्तन होता है। कुछ शब्द अर्थयात्रा करते हैं, अतः कालान्तर में उनका अर्थबोध करना कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में उनकी वाचना और पाठ-शुद्धि का कार्य सरल नहीं होता | युगप्रधान गणाधिपति तुलसी ने आगम के समुद्र-मंथन का दुरूह कार्य जो चालीस वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया, वह आचार्य महाप्रज्ञजी के निर्देशन में आज तक निर्बाध गति से चल रहा है। पूज्य गुरुदेव एवं आचार्यश्री के मन में उदग्र आकांक्षा है कि पुराने साहित्य को नए संदर्भों में प्रस्तुति दी जाए। उनका चिन्तन रहा कि यदि अनुसंधानपूर्वक तटस्थ दृष्टि से परिश्रमपूर्वक आगमों का कार्य किया जाएगा तो इसके आलोक में नए तथ्य प्रकट होंगे और जिनवाणी की गरिमा बढ़ेगी।
आगम साहित्य में छेदसूत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मुनि की समग्र चर्या के अवबोधक होने के कारण आचारशास्त्र की दृष्टि से इन ग्रन्थों का अपना विशेष महत्त्व है। आचार में स्खलना होने पर ये ग्रन्थ नीति का निर्धारण करते हैं अतः नीतिशास्त्र की दृष्टि से भी इनका विशेष स्थान है। गीतार्थ और कृतयोगी - ये जैन मुनि की विशेष अवस्थाएं या उपाधियां हैं। इन दोनों अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए छेदसूत्रों का अध्ययन आवश्यक है। बिना छेदसूत्रों का अध्ययन किये मुनि आचार्य पद पर प्रतिष्ठित नहीं हो सकता तथा स्वतन्त्र होकर भिक्षा आदि भी नहीं कर सकता। छेदसूत्रों को सीखकर भूलने वाला भी प्रायश्चित्त भागी होता है । ये सब तथ्य छेदसूत्रों की महत्ता को प्रकट करने वाले हैं।
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छेदसूत्रों में व्यवहार सूत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पदविभाग सामाचारी का जितना व्यवस्थित वर्णन व्यवहार सूत्र में है, वैसा अन्य छेदसूत्रों में नहीं मिलता।
ग्रंथ परिचय
व्यवहार भाष्य एक आकर ग्रंथ है। इसमें कुल ४६६४ गाथाएं हैं । प्रारम्भ में भाष्यकार ने पीठिका लिखी है, जिसे आज की भाषा में भूमिका कह सकते हैं। इसमें कुल १८३ गाथाएं हैं। मूल ग्रंथ १० उद्देशकों में विभक्त है । किस उद्देशक पर कितनी गाथाएं लिखी गयीं इसका संकेत हमने परिशिष्ट नं. ३ में कर दिया है। कुछ अतिरिक्त गाथाएं, जिनको हमने मूल में नहीं स्वीकारा है, उनको पादटिप्पण में दे दिया है। मूल ग्रंथ में भी कुछ अतिरिक्त गाथाओं को लिया है पर उनको मूल क्रमांक में नहीं जोड़ा है । प्रस्तुत ग्रंथ में अनेक विषयों का प्रतिपादन है। हमने कुछ विषयों का संकलन परिशिष्टों में किया है। प्रस्तुत ग्रंथ के साथ २३ परिशिष्ट संलग्न हैं, जो इसके महत्त्वपूर्ण तथ्यों की ओर संकेत करने वाले हैं। इन परिशिष्टों के माध्यम से शोधार्थी अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर सकते हैं। परिशिष्टों का क्रम इस प्रकार है
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