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________________ विषयानुक्रम ४५१२-२०. धारणा व्यवहार प्रयोक्ता की विशेषताएं। ४५२१.४५२२. जीत व्यवहार का स्वरूप। ४५२३. जीतव्यवहार कब से? शिष्य का प्रश्न। ४५२४, ४५२५. प्रथम संहनन, चतुर्दश पूर्वधरों की व्यवच्छिति के साथ व्यवहार चतुष्क का लोप मानने वालों का निराकरण और प्रायश्चित्त । ४५२६, ४५२७ जंबूस्वामी के निर्माण के बाद १२ अवस्थाओं का व्यवच्छेद। ४५२६८ ४५२६,४५३०. व्यवहार चतुष्क के धारकों का विवरण। ४५३१. चौदहपूर्वी के व्यवच्छेद होने पर व्यवहार चतुष्क का व्यवच्छेद मानना मिथ्या । ४५३२. ४५३३-४६. ४५५०-५३. ४५५४-६६. तित्थोगाली में सूत्रों के व्यवच्छेद का विवरण । जीत व्यवहार के विविध प्रयोग । पांच प्रकार के व्यवहारों का गुणोत्कीर्तन | चार प्रकार के पुरुष - अर्थकर, मानकर, उभयकर, नोउभयकर का विवरण तथा शक राजा का दृष्टान्त । चार प्रकार के पुरुष-गणार्थकर आदि तथा राजा का दृष्टान्त । ४५७१,४५७२. चार प्रकार के पुरुष गणसंग्रहकर आदि । ४५७३,४५७४. चार प्रकार के पुरुष - गणशोभकर आदि । ४५७५,४५७६. चार प्रकार के पुरुष - गणशोधिकर आदि । ४५७७-८०. लिंग और धर्म के आधार पर चार प्रकार के पुरुष । ४५८१-८४. गणसंस्थिति और धर्म के आधार पर चार प्रकार के पुरुष प्रियधर्म और धर्म के आधार पर पुरुषों के ४५६७-७० चतुर्दशपूर्वी की व्यवच्छित्ति होने पर तीन वस्तुओं का व्यवच्छेद- प्रथम संहनन, प्रथम संस्थान, अन्तर्मुहूर्त में चौदह पूर्वी का परावर्तन | ४५८५-८८ चार प्रकार । चार प्रकार के आचार्य । ४५८६-६४. ४५६५, ४५६६. चार प्रकार के अंतेवासी। ४५९७४६०१. तीन प्रकार की स्थविरभूमियां । ४६०२-४६०६. तीन शैक्षभूमियां । ४६०७. ४६०८. परिणामक के दो प्रकार आज्ञा परिणामक, दृष्टान्त परिणामक । आज्ञा परिणामक का विवरण । Jain Education International - ४६०६. ४६१०-१२. श्रद्धा का उत्पादन । ४६१३-२४. इन्द्रियावरण और विज्ञानावरण विषयक वर्णन। ४६२५-२८. षड्जीवनिकाय में जीवत्व सिद्धि । जडु के प्रकार और विवरण । ४६२६-३५. ४६४५. ४६४६-५१. ४६३६. जलमूक आदि व्यक्ति दीक्षा के अयोग्य । ४६३७-४४. प्रव्रजित करने के विषय में व्यक्ति विशेष का विवरण | प्रव्रज्या की अल्पतम वय का निर्देश । आठ वर्ष से कम बालक में चारित्र की स्थिति नहीं, कारणों का निर्देश । आचारप्रकल्प निशीय के उद्देशन का - ४६५२-५४. ४६६०. कालमान । ४६५५-५६ सूत्रकृतांग, स्थानांग आदि आगमों के अध्ययन का दीक्षा पर्यायकाल । . द्वादशवर्ष पर्याय वाले मुनि को अरुणोपपात, वरुणोपपात आदि पांच देवताधिष्ठित सूत्रों का अध्ययन विहित । ४६६१, ४६६२. अरुणोपपात आदि के परावर्तन से देवता की उपस्थिति । ४६६३-६५. तेरह वर्ष की संयम पर्याय वाले मुनि के लिए उत्थान श्रुत आदि चार ग्रंथों का अध्ययन विहित तथा इन ग्रंथों के अतिशयों का कथन | चौदह वर्ष के संयम पर्याय वाले मुनि के लिए स्वप्नभावना ग्रंथ का अध्ययन विहित । पन्द्रह वर्ष के संयमपर्याय वाले मुनि के लिए चारणभावना ग्रंथ का अध्ययन विहित और उससे चारणलब्धि की उत्पत्ति का कथन । तेजोनिसर्ग आदि ग्रंथ के अध्ययन का संयम पर्याय काल और उन ग्रंथों का अतिशय । प्रकीर्णकों तथा प्रत्येक बुद्धों की संख्या का ४६६६. ४६६७. [ १४१ दृष्टान्त परिणामक का स्वरूप। दृष्टान्त परिणामक में विविध दृष्टान्तों द्वारा ४६६८-७०. ४६७१. For Private & Personal Use Only कथन । ४६७४. ४६७५-८१. ४६७२, ४६०३. प्रकीर्णक को पढ़ाने से विपुल निर्जरा। आचारांग आदि अंगों के अध्ययन की विधि। दस प्रकार का वैयावृत्त्य और उनकी क्रियान्विति के तेरह पद । ४६८२,४६८३. साधर्मिक के प्रति वैयावृत्त्य का विशेष निर्देश। www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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