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विषयानुक्रम
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४०८७६०. श्रुत संपदा के चार प्रकार। ४०६१-६४. शरीर संपदा के चार प्रकार। ४०६५-६७. वचन संपदा के चार प्रकार। ४०९-४१०३. वाचना संपदा के चार प्रकार। ४१०४-१५. मति संपदा के चार प्रकार। ४११६-२४. संग्रह परिज्ञा के चार प्रकार। ४१२५-२८. व्यवहार समर्थ के ३६ स्थान। ४१२६-३१. विनयप्रतिपत्ति के चार भेद। ४१३२-३६. आचार विनय के चार प्रकार तथा उनका
विवरण। ४१४०-४२. श्रुत विनय के चार प्रकार तथा उनका विवरण। ४१४३-४६. विक्षेपणा विनय का विवरण। ४१५०-५५. दोष-निर्घातन विनय के प्रकार तथा उनका
विवरण। ४१५६. छत्तीस स्थानों में कशल ही आगमव्यवहारी। ४१५७-६२. आगमव्यवहारी के अन्यान्य गुण। ४१६३,४१६४. वर्तमान में आगमव्यवहारी एवं चारित्र शद्धि
का व्यवच्छेद। ४१६५. चतुर्दश पूर्वधर का व्यवच्छेद। ४१६६.
केवली आदि के व्यवच्छेद से क्या प्रायश्चित्त
का भी व्यवच्छेद ? ४१६७. प्रायश्चित्त के व्यवच्छेद से चारित्र-निर्यापकों
की व्यवच्छित्ति कैसे? ४१६८-७१. परोक्षज्ञानी द्वारा प्रायश्चित देना महान पाप,
कारण का निर्देश। ४१७२.
व्यवच्छित्ति के विषय में आचार्य का उत्तर। ४१७३. निशीथ, कल्प और व्यवहार का नि!हण नौवें
पूर्व से। ४१७४. दस प्रकार के प्रायश्चित्त तथा आठ प्रायश्चित्त
का विधान कब तक? ४१७५-७६. प्रायश्चित्तों की यथावत अवस्थिति में चक्रवर्ती
के वधकिरत्न का उदाहरण। ४१८०. प्रायश्चित्त के दस प्रकार। ४१८१-८३. अनवस्थाप्य और पारांचित प्रायश्चित्त चतुर्दश
पूर्वी के साथ विच्छिन्न। ४१८४-८७. पुलाक आदि पांच प्रकार के निर्ग्रन्थ तथा उनके
प्रायश्चित्तों का विवरण।। ४१८०-६३. सामायिक आदि पांच प्रकार के निर्ग्रन्थ तथा
उनके प्रायश्चित्तों का विधान ।
४१६४-४२०३. प्रायश्चित्तों के वाहक क्यों नहीं? धनिक का
दृष्टान्त। ४२०४-१२. तीर्ण की अव्यवच्छित्ति का उपाय-उपयुक्त
प्रायश्चित्त दान, तिल का दृष्टान्त। ४२१३,४२१४. दर्शन और ज्ञान से ही तीर्थ की रक्षा, पक्ष
विपक्ष का विवरण। ४२१५.
प्रायश्चित्त के बिना चारित्र की अवस्थिति
नहीं। ४२१६. चारित्र के बिना निर्वाण नहीं। ४२१७. तीर्थ और निर्ग्रन्थ अन्योन्याश्रित। ४२१८ चारित्र की धुरा : महाव्रत और समिति की
आराधना। ४२१६ तीर्थ की धुरा : ज्ञान और दर्शन की आराधना। ४२२०. निर्यापकों के प्रकार एवं उनकी अव्यवच्छित्ति। ४२२१-२६. तीन प्रकार के अनशनों का विवरण। ४२२७-३०. निर्व्याघात भक्तपरिज्ञा से सम्बन्धित द्वारों का
उल्लेख। ४२३१-३५. भक्तपरिज्ञा के लिए गणनिस्सरण और
परगणगमन के गुणों का वर्णन। ४२३६,४२३७. प्रशस्त अध्यवसायों में आरोहण का उल्लेख। ४२३८-५०. संलेखना के प्रकार, १२ वर्ष में की जाने वाली
तपस्या का विवरण। ४२५१-६४. अगीतार्थ के पास अनशन करने के अनेक
दोष अतः गीतार्थ की मार्गणा करने का
निर्देश। ४२६५-६७. असंविग्न के समीप अनशन करने के दोष
और प्रायश्चित्त। ४२६८-७२. संविग्न की मार्गणा का निर्देश। ४२७३-७४. अनशन में अनेक निर्यापक रखने का निर्देश। ४२७६-७६. अनशन की पारगामिता के लिए देवता आदि
का सहयोग, तद्विषयक कंचनपुर की घटना। ४२८०,४२८१. अनशनकर्ता का व्याघात कैसे? ४२८२-८४. गच्छ को पूछे बिना अनशन करने वाले आचार्य
को प्रायश्चित्त तथा अनापृच्छा के दोष। ४२८५-६४.
अनशनकर्ता की गच्छ, आचार्य तथा अन्य अनशनकत्ता का गच्छ, मुनियों द्वारा परीक्षा, कोंकणक तथा अमात्य
का दृष्टान्त। ४२६५-४३००. अनशनकर्ता की शोधि का उपाय
आलोचना।
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