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________________ विषयानुक्रम [१३७ प्रायश्चित्त। ३६१६,३६१७. अतिरिक्त पात्र ग्रहण के हेतु। ३६१८,३६१६. आभिग्रहिक मुनि के प्रकार तथा आचार्य द्वारा पात्र लाने का आदेश। ३६२०-२५. अतिरिक्त पात्र ग्रहण के तीन प्रकार। ३६२६. आचार्य द्वारा संदिष्ट आभिग्रहिकों की सामाचारी। ३६२७. पात्र-प्रतिलेखन। ३६२८. आनीत पात्रों की वितरण विधि। ३६२६-३३. पुराने पात्र ग्रहण करने के अनेक हेतु, पात्र दुर्लभता के कारण नंदी आदि पांच प्रकार के पात्रों के ग्रहण का निर्देश। ३६३४. पात्र देने वालों के दो प्रकार-एक या अनेक। ३६३५. निर्दिष्ट को पात्र न देने पर प्रायश्चित्त। ३६३६. भिक्षणी सम्बन्धी निर्देश्य के पांच प्रकार और विभिन्न विकल्प। ३६३७४१. ग्लान आदि को पात्र न देने पर प्रायश्चित्त। ३६४२ छह प्रकार के जंगित। ३६४३-४५. ग्लान आदि को पात्र आदि देने की विधि। ३६४६-४६ पात्र देने वाला सांभोजिक अथवा असांभोजिक प्रश्न तथा उत्तर। ३६५०,३६५१. उपकरण सांभोजिक तथा असांभोजिक कैसे? ३६५२-५४. गच्छनिर्गत मुनि के संवेग प्राप्ति के तीन स्थान। ३६५५-५७. अवधावन करने वाले मुनि की सारणा-वारणा। ३६५८-६४. अवधावित मुनि का पुनः आगमन तथा उपकरण सम्बन्धी निर्देश। ३६६५-७६. अगार लिंग तथा स्वलिंग में अवधावन । ३६८०-६५. आहार की मात्रा का विवेक, जघन्य, उत्कृष्ट मात्रा तथा अमात्य का दृष्टान्त। ३६६६-६६. शिष्यों को उपयुक्त आहार न देने वाले आचार्य। ३७००-३७०२. उपयुक्त आहार-ग्रहण करने की विधि। ३७०३. सागारिक पिंड संबन्धी निर्देश। ३७०४. आदेश शब्द की व्याख्या। ३७०५. आदेश, दास और भृतक के पिंड की आठ सूत्रों से मार्गणा। ३७०६-३७०८. प्रातिहारी और अप्रातिहारी का वर्णन। ३७०६. भद्रक एवं प्रान्त व्यक्ति के चिन्तन में भेद । ३७१०-१४. सूत्र में आज्ञा फिर अर्थ गत निषेध क्यों? ३७१५. निसृष्ट अप्रातिहारी पिंड। ३७१६. पूर्व-संस्तुत एवं पश्चात्-संस्तुत आदि का वर्णन। ३७१७-२०. सागारिक दोष एवं प्रसंग दोष से भक्तपान ग्रहण का निषेध। ३७२१-२३. एगचुल्ली आदि की व्याख्या। ३७२४-३६. साधारण शालाओं के भेद एवं उनमें भक्त ग्रहण का निषेध। ३७३७. व्यंजन ग्रहण विषयक सामाचारी। ३७३८-४२. गोरस, गुड़ आदि औषधियों के दो प्रकार। ३७४३-५७. वृक्ष आदि से सम्बन्धित शय्यातर के अवग्रह का विवेक। ३७५-७५. विभिन्न दृष्टियों से कल्प-अकल्प का विवेचन। ३७७६-८८ प्रतिमाओं (विशेष साधना) के विभिन्न प्रकार और विवरण। ३७८६-३८०२. क्षुल्लिका एवं महल्लिका मोक प्रतिमा का स्वरूप एवं विवरण। ३८०३-३८०६. मोकप्रतिमा सम्पन्न कर उपाश्रय में अनुसरणीय विधि। ३८१०. मोकप्रतिमा सम्पन्न साधक के गुण। ३८११-१७. दत्तियों का विवरण। ३८१८३८१६. उपहृत के प्रकार और विवरण। . ३८२०-२२. शुद्ध आदि पदों की व्याख्या। ३८२३-२७. अवगृहीत के तीन प्रकार तथा व्याख्या। ३८२८-३०. दीयमान प्रयोग्य तथा संहृत की व्याख्या। ३८३१-३६. यवमध्यचन्द्रप्रतिमा तथा वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा का स्वरूप, दत्तिया तथा संहनन। ३८३७४१. प्रतिमाधारी और व्युत्सृष्ट काय। ३८४२-५१. उपसर्गों के प्रकार एवं दृष्टान्तों से उनका अवबोध। ३८५२-६४. अज्ञातोञ्छ के प्रकार और ग्रहण विधि। ३८६५-७७. देहली का अतिक्रमण करने से उत्पन्न दोष। ३८७८-८० प्रतिमाधारी द्वारा उद्यान आदि में पिण्ड-ग्रहण की विधि। ३८८१-८५. पांच प्रकार के व्यवहार की उपयोग-विधि। ३८८६. आज्ञा के दो प्रकार। ३८८७. आज्ञा व्यवहार की आराधना के प्रकार और उसका परिणाम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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