SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ ] व्यवहार भाष्य ३३६७,३३६८. जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक के लिए तणों का परिमाण। ३३६६,३४००. ग्लान और अनशन किए हए मुनि के संस्तारक का स्वरूप। ३४०१. अग्लान के लिए तृणमय संस्तारक का वर्जन। ३४०२. कल्प और प्रकल्प की व्याख्या। ३४०३. ऋतुबद्ध काल में तृण ग्रहण करने की यतना। ३४०४,३४०५. ऋतुबद्ध काल में फलकग्रहण की यतना और फलक के पांच प्रकार। ३४०६. यतना से गृहीत फलक का प्रायश्चित्त । ३४०७. फलक को उपाश्रय के बाहर से लाने की विधि। ३४०८. गोचरान के लिए जाते समय भिक्षा और संस्तारक दोनों लाने का निर्देश। ३४०६. ऋतुबद्ध काल में संस्तारक न लेने पर प्रायश्चित्त। ३४१०-१२. वर्षाकाल में संस्तारक ग्रहण न करने पर प्रायश्चित्त और उसके कारण। ३४१३. वर्षाकाल में फलक-संस्तारक ग्रहण की विधि। ३४१४-७३. वर्षाकाल में फलक के ग्रहण, अनुज्ञापना आदि पांच द्वारों का विस्तृत वर्णन। ३४७४,३४७५. वृद्धावास योग्य. संस्तारक का कथन और उसका कालमान। ३४७६. सहाय रहित वृद्ध की सामाचारी। ३४७७-८१. दंड, विदंड आदि पदों की व्याख्या और उनका उपयोग। ३४८२. दंड आदि उपकरणों की स्थापना विधि । ३४८३. दंड आदि के स्थापना संबंधी शिष्य का प्रश्न और आचार्य का उत्तर। ३४८४-८८. अतिवृद्ध मुनि का उपकरणों को रखकर भिक्षा के लिए जाने का कारण और यतना का निर्देश। ३४८६-६१. मार्ग में स्थविर के भटक जाने पर अन्वेषण-विधि। ३४६२-६४. स्थविर द्वारा खोज की अन्य विधि में उपकरणों की स्थापना करने के वर्जनीय स्थानों का निर्देश। ३४५. उपकरणों को स्थापित करने के स्थानों का निर्देश। ३४६६-३५०५. लोहकार आदि ध्रवकर्मिक को उपकरण संभलाने तथा उसके नकारने पर उपधि प्राप्त करने की विधि। ३५०६-३५०८. शून्यगृह में आहार करने की विधि। ३५०६,३५१०. अवग्रह का अनुज्ञापन तथा अनुज्ञापक। ३५११-१७. प्रातिहारिक तथा सागारिक शय्या-संस्तारक को बाहर ले जाने की विधि और प्रायश्चित्त । ३५१८ अननुज्ञाप्य संस्तारक के ग्रहण का विधान। ३५१६. अननुज्ञाप्य शय्या-संस्तारक ग्रहण करने के दोष तथा प्रायश्चित्त। ३५२०-२३. दत्तविचार और अदत्तविचार अवग्रहों में तृण फलक आदि लेने की विधि और निषेध । ३५२४. अननुज्ञात अवग्रह में रहने के दोष। ३५२५-३०. अननुज्ञात अवग्रह का ग्रहण किन कारणों से? ३५३१-३५. वसति स्वामी को अनुकूल करने की विधि। ३५३६-५०. लघुस्वक उपधि के प्रकार तथा परिष्ठापित उपधि ग्रहण के दोष एवं प्रायश्चित्त । ३५५१-६१. पथ में विश्राम करने से मिथ्यात्व आदि दोष। ३५६२-६५. मार्ग में विश्राम करने का अपवाद मार्ग। ३५६६-६८ विश्राम के पश्चात् प्रस्थान के समय सिंहावलोकन, विस्मृत वस्तु को न लाने पर • प्रायश्चित्त। ३५६६,३५७०. कैसी वस्तु विस्मृत होने पर न लाए? ३५७१-७६. विस्मृत उपधि की दूसरे मुनियों द्वारा निरीक्षण विधि। ३५८०-८२. विस्मृत उपधि को ग्रहण करने के पश्चात मनि क्या करे? उपधि-परिष्ठापन की विधि तथा आनयन विधि। ३५६३. अतिरिक्त पात्र ग्रहण की विधि। ३५६४. उद्देश एवं निर्देश की व्याख्या। ३५८५. प्रमाणोपेत उपकरण धारण का निर्देश। ३५६६,३५६७. अतिरिक्त पात्र धारण के दोष, शिष्य का प्रश्न तथा समाधान। ३५६५-३६०३. अनेक मुनियों द्वारा एक ही पात्र रखने के दोष। ३६०४-१०. आचार्य आर्यरक्षित द्वारा मात्रक की सकारण अनुज्ञा। ३६११-१५. कारण के अभाव में मात्रक प्रयोग का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy