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________________ विषयानुक्रम [१३५ ३१८८-६३. प्रादोषिक कालग्रहण कर गुरु के पास आने की विधि और गुरु को निवेदन। ३१६४-३२१४. काल चतुष्क की उपघात विधि। ३२१५-२१. स्वाध्याय की प्रस्थापन विधि। ३२२२. अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने का निषेध किन्तु वाचना की अनुमति । ३२२३-२७. आत्मसमुत्थ अस्वाध्यायिक के भेद और उसकी यतना। ३२२८,३२२६. अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने से दोष। ३२३०-३३. शरीरगत रक्त का अस्वाध्यायिक क्यों नहीं? शिष्य का प्रश्न और आचार्य का उत्तर। ३२३४-३६. राग, द्वेष, मोह वश अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करने के दोष। ३२४०-४२. साधु एवं साध्वी के परस्पर वाचना देने का प्रयोजन एवं दीक्षा पर्याय का कालमान। ३२४३,३२४४. आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी का संग्रह क्यों? साध्वियों के अवश्य संग्रह का निर्देश तथा अनेक दृष्टान्तों द्वारा समर्थन। ३२५३. जरापाक मुनि की व्याख्या। ३२५४-५७. मृत साधु की परिष्ठापन-विधि तथा उपकरणों का समर्पण। ३२५८३२५६. मृत परिष्ठापन में स्थण्डिल की प्रत्यपेक्षणा। ३२६०,३२६१. प्रत्युपेक्षण न करने के दोष और प्रायश्चित्त। ३२६२-६४. स्थण्डिल में परिष्ठापन के दोष। ३२६५,३२६६. मृत के लिए वस्त्रों का विवेक। ३२६७-७३. मृत के परिष्ठापन में दिशा का विवेक। ३२७४-७६. परिष्ठापन करने योग्य स्थण्डिल का निर्देश। ३२७७-७६. श्मशान में परिष्ठापन की विधि। ३२८०-८२. सात से कम मुनि होने पर परिष्ठापन की विधि। ३२८३. गृहस्थों द्वारा मुनि के शव का परिष्ठापन, उसके दोष और प्रायश्चित्त। ३२८४-८६. मुनि द्वारा ही मुनि के शव का परिष्ठापन करने का निर्देश। ३२८७-६६. अकेले मुनि द्वारा शव के परिष्ठापन की विधि। ३३००-३३०५. परिष्ठापन की विशेष विधि एवं प्रायश्चित्त का विधान। ३३०६. शव को परलिंग क्यों किया जाता है? ३३०७,३३०८, शव के उपधिग्रहण की विधि। ३३०६-४२. अवग्रह विषयक अवधारणा, शय्यातर कब, कैसे? ३३४३. विधवा आदि को शय्यातर बनाने का विधान। ३३४४. विधवा और धव शब्द का निरुक्त। ३३४५,३३४६. शय्यातर से सम्बन्धित प्रभु और अप्रभु की व्याख्या। ३३४७३३४८ शय्यातर की अनुज्ञापना किससे? ३३४६-५३. मार्ग आदि में भी अवग्रह की अनुज्ञापना। वृक्ष पडालिका आदि को शय्यातर बनाने का निर्देश। ३३५४. राज्यावग्रह का निर्देश। ३३५५,३३५६. संस्तृत, अव्याकृत और अव्यवच्छिन्न की व्याख्या। ३३५७,३३५८. पूर्वानुज्ञात अवग्रह का कालमान। ३३५६. भिक्षुभाव की व्याख्या। ३३६०-६२. राजा के कालगत होने पर अनुज्ञापना किसको? ३३६३-६५. भद्रक को अनुज्ञापित करने पर राजा का दातव्य सम्बन्धी प्रश्न और उत्तर। ३३६६. प्रायोग्य का स्वरूप कथन। ३३६७. भद्रक द्वारा दीक्षा की अनुज्ञा का निषेध।' ३३६८ राजा को अनुज्ञापित किए बिना देश छोड़ने पर प्रायश्चित्त। ३३६६ देश छोड़ने के उपायों का निर्देश। ३३७-७७. प्रव्रज्या के लिए अनुज्ञा-अननुज्ञा का कथन। ३३७८-८१. राजा को अनुकूल बनाने का विधान। ३३८२. साधर्मिक अवग्रह का कथन । ३३८३. गृह शब्द के एकार्थक और साधर्मिक अवग्रह के भेद। ३३८४. गृह के तीन प्रकार। ३३८५. शिष्य द्वारा शय्यासंस्तारक भूमि के लिए गुरु को निवेदन। ३३८६,३३८७. आचार्य द्वारा उस याचित भूमि की स्वीकृति। ऋतुबद्धकाल, वर्षावास और वृद्धावास के योग्य शय्या-संस्तारक। ३३८६-६४. संस्तारक के विविध विकल्प, उनकी व्याख्या और प्रायश्चित्त। ३३८५. सूत्र का प्रवर्तन सकारण, कारण की जिज्ञासा। ३३६६. संस्तारक के लिए तण ग्रहण करने की विधि। ३३८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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