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विषयानुक्रम
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२३९२,२३६३. श्रमण द्वारा ग्लान श्रमणी की तथा श्रमणी
द्वारा ग्लान श्रमण की वैयावृत्त्य करने की
विधि। २३६४,२३८५. आगाढ प्रयोजन में द्विपक्ष वैयावृत्त्य अनुज्ञात । २३६६. वैयावृत्त्य का सामान्य नियम। २३६७. सूत्र से अर्थ का सम्बन्ध कैसे? २३६८-२४००. विपक्ष के वैयावृत्त्य से दोष। २४०१-२४०७. औषध आदि का ग्रहण तथा वैद्य का दृष्टान्त । २४०८. राजा के दो प्रकार-आत्माभिषिक्त और
पराभिषिक्त। २४०६. पराक्रमी राजा के चार बिंदु । २४१०. सूत्रार्थविहीन एवं औषधविहीन आचार्य की
व्यर्थता। २४११-१५. औषधि आदि निचय सम्बन्धी शिष्य का प्रश्न
और आचार्य का उत्तर। २४१६-२२. औषध के संचय का निषेध। २४२३. समाधि के लिए शिष्य का प्रश्न और आचार्य
का उत्तर। २४२४-२७. विद्या और मंत्र का संनिचय विहित। २४२८-३२. गणधारी के चिकित्साज्ञान की अनिवार्यता। २४३३,२४३४. लवसप्तमदेव का स्वरूप। २४३५ स्वपक्ष से चिकित्सा, विपक्ष से नहीं। २४३६.
वैयावृत्त्य विषयक सूत्र और अर्थ में विपर्यास
की चर्चा। २४३७,२४३८. वैद्य के अभाव में वैयावृत्त्य किससे? २४३६-४३. दूती विद्या, आदर्श विद्या आदि द्वारा
रोगनिवारण का निर्देश। २४४४. निर्ग्रन्थ के निर्ग्रन्थी द्वारा तथा निर्ग्रन्थी के
निर्ग्रन्थ द्वारा वैयावृत्त्य करने पर प्रायश्चित्त का
विधान। २४४५,२४४६. जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक के वैयावृत्त्य
का विधान। २४४७. सर्पदंश के लिए ज्ञातविधि का ज्ञान। २४४८-५५. ज्ञातविधि का संज्ञान, प्रायश्चित्त तथा विविध
दोषों की समापत्ति। २४५६-५६. सेनापति का दृष्टान्त। २४६०,२४६१. लोभ की समुदीरणा में रत्नस्थाल का दृष्टान्त। २४६२-७३. ज्ञातविधिगमन के दोष तथा संयम से चालित
करने के ११ उपाय।
२४७४-७६. उत्प्रव्रजित मुनि द्वारा होने वाले दोषों का
वर्णन। २४८०-५२. ज्ञातविधिगमन के उत्सर्ग, अपवाद तथा
यतना। २४८३. स्वाध्याय तथा भिक्षाभाव द्वारा शिष्य की
परीक्षा। २४८४,२४५५. मंदसंविग्न और तीव्रसंविग्न कौन?. . २४८६-८८. उपसर्ग-सहिष्णु की परीक्षा। २४८६. स्वजनों से प्रतिबद्ध या अप्रतिबद्ध की पहचान। २४६०-६३. ज्ञातविधि में जाने वाले की योग्यता और
सहयोगियों की चर्चा। २४६४. स्वज्ञातिक मुनि द्वारा धर्मकथा करने का निर्देश
और विधि। २४६५. थावच्चापुत्र का दृष्टान्त कहने का निर्देश। २४६६-६६. पूर्वायुक्त और पश्चादायुक्त भोजन की
व्याख्या। २५००. भिक्षु को द्रव्यों के प्रमाण आदि का ज्ञान। २५०१. सात प्रकार का ओदन। २५०२. शाक, व्यञ्जन आदि का परिमाण। २५०३. द्रव्य ग्रहण का परिमाण। २५०४. भिक्षा-वेला का ज्ञान तथा संविग्न संघाटक। २५०५-२५०६. ग्लान मुनि की चिकित्सा में पुरःकर्म तथा
पश्चात् कर्म का विवेक। २५१०-१३. ग्लान के प्रयोजन से ज्ञातविधि प्राप्त करने
वाले मुनियों की यतना। २५१४-१८ ज्ञातविधि प्राप्त करने के हेतु। २५१६,२५२०. बहुश्रुत के अनेक अतिशय। २५२१. आचार्य के पांच अतिशेषों का वर्णन। २५२२-२६. आचार्य के चरण-प्रमार्जन की विधि। अविधि
से करने पर दोष तथा प्रायश्चित्त । २५३०,२५३१. आचार्य के बहिर्गमन का हेतु तथा शैक्ष का
प्रश्न। २५३२-३७. आचार्य के वसति के बाहर ठहरने के दोष । २५३८-४१. क्या भिक्षु वसति के बाहर रह सकता है? प्रश्न
का समाधान। २५४२-५२. दूसरा अतिशय-संज्ञाभूमि में गमन, निषेध
और अपवाद। २५५३-५७. लौकिक विनय बलवान या लोकोत्तर विनय? २५५८,२५५६. आचार्य के संज्ञाभूमि-गमन के अवसर पर
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