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________________ विषयानुक्रम [१२६ २०१६. आचार्य की स्थापना, परीक्षा और राजा का दृष्टान्त। १६६-२००३. मरण शय्या पर स्थित आचार्य का विवरण। २००४-२००७. अगीतार्थ का मरणासन्न आचार्य को निवेदन । २००८,२००६. मरणासन्न आचार्य को अगीतार्थ मुनि द्वारा भय दिखाना। २०१०. भिन्न देश से आए मुनि की अनहता। २०११. वाचक और निष्पादक ही आचार्य के योग्य। २०१२. आचार्य द्वारा अनुमत शिष्य को गण न सौंपने पर प्रायश्चित्त। २०१३. अयोग्य मुनि द्वारा आचार्य पद न छोड़ने पर। प्रायश्चित्त। २०१४. आचार्य द्वारा अनुमत शिष्य यदि विशेष साधना पर जाए तो अन्य मुनि को निर्मापित करने की प्रार्थना। २०१५. विशेष साधना की अपेक्षा गच्छ का परिचालन विपुल निर्जरा का कारण। गीतार्थ मुनियों के कथन पर यदि कोई आचार्य पद का परिहार न करे तो प्रायश्चित्त। २०१७. आचार्य के प्रति शिष्य का अवश्यकरणीय कर्त्तव्य। २०१८,२०१६. आचार्य और उपाध्याय का रोग और मोह के कारण अवधावन। २०२०-२२. रोग से अवधावन की चिकित्सा-परिपाटी, परिपाटी के चार घटक और उनका चिकित्सा-विवेक। २०२३-३०. रोग से अवधावनोत्सुक मुनि की चिकित्सा विधि। २०३१-५२. भग्नव्रत की उपस्थापना और प्रायश्चित्त विधि। २०५३-५६. प्रायश्चित्त की विस्मृति के चार कारण। २०५७-६२. स्मरण-अस्मरण विषयक विवरण। २०६३,२०६४. गणापक्रमण करने वाले का विवरण। २०६५-६६. 'अट्टे लोए परिजुण्णे' सूत्र की व्याख्या। २०७०-७३. सूत्रार्थ का सही अर्थ जान लेने पर गणापक्रमण। २०७४. गुरु की आज्ञा की प्रधानता। २०७४-७८. अभिनिचारिकायोग का विवरण तथा प्रायश्चित्त। २०७६,२०८०. चरिकाप्रविष्ट द्वितीय सूत्र की व्याख्या। २०८१. उपपात के एकार्थक। २०६२,२०८३. मितगमन आदि का निर्देश तथा ध्रव की व्याख्या। २०८४. सूत्रगत 'वेउट्टिय' शब्द का भावार्थ कथन। २०८५. कायसंस्पर्श की व्याख्या। २०८६. स्मारणा, वारणा आदि भिक्षुभाव के घटक। २०८७. गणमुक्त साधना करने के कुछ हेतु। २०८८,२०८६. आचार्य की अनुज्ञा के बिना गणमुक्त होने पर प्रायश्चित्त। २०EO. आचार्य द्वारा क्षेत्र की प्रतिलेखना। २०६१. क्षेत्र की प्रतिलेखना न करने के दोष । २०६२-२१०१. चरिकाप्रविष्ट आदि चार सूत्रों की नियुक्ति। चरिका से निवृत्त विपरिणत मुनि विषयक विवरण और प्रायश्चित्त। २१०२,२१०३. विदेश अथवा स्वेदश में दूर प्रस्थान करने की विधि। २१०४,२१०५. उपसंपद्यमान की परीक्षा। २१०६,२१०७. परीक्षा में अनुत्तीर्ण साधुओं का विसर्जन। २१०९-१२. प्रतीच्छक कितने समय तक प्रतीच्छक? २११३-१६. निर्गम की अनुज्ञा और उसकी यतना। २११७. आभवद् व्यवहार विधि तथा प्रायश्चित्त-विधि । २११८-२४. आगाढ और अनागाढ़ स्वाध्याय भूमि का कालमान। २१२५-२७. योग को वहन करने वाले मुनि के योग का भंग कब कैसे? २१२८-३६. योग विसर्जन का कारण और विधि। २१३७-४६. निर्विकृतिक आहार-विधि तथा अन्य विवरण। २१४७-४६. माया से योग विसर्जन का परिणाम। २१५०-५७ मायावी मुनि के व्यवहार के अनेक कोण। २१५८ नालबद्ध और वल्लीबद्ध के प्रकार और व्यक्तियों का निर्देश। २१५६-६४. उपस्थापना पहले पीछे किसको? २१६५-७६. आचार्य के लिए आभाव्य शिष्य कौन? २१७७-८५. दो के विहरण की मर्यादा तथा प्रायश्चित्त आदि का विवरण। २१८६-८६. रत्नाधिक का शैक्ष के प्रति कर्त्तव्य। । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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