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________________ १२८] व्यवहार भाष्य । १८१८-२३. वर्षाकाल में समाप्तकल्प और असमाप्तकल्प वाले मनियों की परस्पर उपसंपदा कैसे? १८२४. सूत्रार्थ भाषण के तीन प्रकार। १८२५. सूत्र में कौन किससे बलवान् ? १८२६. सूत्रार्थ में कौन किससे बलवान? १८२७,१८२८ सूत्र से अर्थ की प्रधानता क्यों? कारणों का निर्देश। १८२६. सभी सूत्रों से छेद सूत्र बलीयान् कैसे? १८३०. मंडली-विधि से अध्ययन का उपक्रम। १८३१. आवलिका विधि और मंडलिका विधि में कौन श्रेष्ठ? १८३२. घोटककडूयित विधि से सूत्रार्थ का ग्रहण। १८३३-३५ समाप्तकल्प की विधि का विवरण। १८३६-४३. प्रव्रज्या के लिए आए शैक्ष एवं विभिन्न मनियों से वार्तालाप। १८४४-४८ प्रव्रजित होने के बाद शैक्ष किसकी निश्रा में रहे? १८४६. शैक्ष के दो प्रकार-साधारण और पश्चात् कृत। १८५०,१८५१. ऋतुबद्धकाल में गणावच्छेदक के साथ एक ही साधु हो तो उससे होने वाले दोष एवं प्रायश्चित्त विधि। १८५२. चार कानों तक ही रहस्य संभव। १८५३. गणावच्छेदक को दो साधुओं के साथ रहने का निर्देश। १८५४. गीतार्थ एवं सूत्र की निश्रा। घोटककंडूयन की तरह सूत्रार्थ का ग्रहण । १८५६-६०. क्षेत्र पूर्वस्थित मुनि का या पश्चाद् आगत मुनि का। १८६१-६३. पश्चात्कृत शैक्ष के भेद एवं स्वरूप। १८६४,१८६५. गण-निर्गत मुनि संबंधी प्राचीन और अर्वाचीन विधि, भद्रबाहु द्वारा तीन वर्ष की मर्यादा। १८६६-७६. विविध उत्प्रव्रजित व्यक्तियों की पुनः प्रव्रज्या का विमर्श। १८७७-८८, वागन्तिक व्यवहार का स्वरूप और विविध दृष्टान्त। १८८६. पुरुषोत्तरिक धर्म के प्रमाण का कथन। १८६०,१८६१. ऋतुबद्ध काल में आचार्य आदि की मृत्यु होने पर निश्रा की चर्चा। १८६२-६५. लौकिक उपसंपदा में राजा का उदाहरण। १८६६,१८६७. निर्वाचित राजा मूलदेव की अनुशासन विधि। १८६८,१८६६. लोकोत्तर सापेक्ष-निरपेक्ष आचार्य का विवरण। १६००. उपनिक्षेप के दो प्रकार। १६०१-१९०८. उपनिक्षेप में श्रेष्ठीसुता का लौकिक दृष्टान्त। १६०६. परगण की निश्रा में साधुओं का उपनिक्षेप कब कैसे? १६१०-१२. साधुओं की परीक्षानिमित्त धन्य सेठ की चार पुत्रवधूओं का दृष्टान्त एवं निगमन। १६१३-१५. आचार्य गण का भार किसको दे? १६१६-२१. उपसंपदा के लिए अनर्ह होने पर निर्गमन और गमन के चार विकल्प। १६२२-३३. अन्य मुनियों के साथ रहने से पूर्व ज्ञानादि की हानि-वृद्धि की परीक्षा विधि। १६३४,१६३५. उपसंपन्न गच्छाधिपति के अचानक कालगत होने पर कर्त्तव्य-निदर्शन। १६३६-४१. सापेक्ष उपनिक्षेप में राजा द्वारा राजकुमारों की परीक्षाविधि। १६४२-४८ नवस्थापित आचार्य का कर्तव्य और मनियों की विभिन्न कार्यों के लिए नियुक्ति। १८४६५१. सूत्रार्थ की वृद्धि न होने से उत्पन्न दोष और गुरु का अनुशासन। १६५२. वृषभ द्वारा सारणा-वारणा। १९५३-५५. गच्छ और गणी विषयक चार विकल्प। स्थविरों द्वारा सारणा-वारणा। १९५७-६६. आचारप्रकल्प के सूत्रार्थ से सम्पन्न और असम्पन्न अनगार के विहार का क्रम। १६७-७६. मुनि किसके साथ रहे-इस विवेक का विस्तृत वर्णन। १९८०-८२. अपान्तराल में समनोज्ञ के साथ एक रात, तीन रात अथवा अधिक रात रहने के कारणों का निर्देश। १६८३-८६. वर्षावास में भिक्षा, वसति और शंका समाधान के लिए अन्यत्र गमन का विवेक। १६६०-६२. आचार्य पद पर स्थापना विषयक विविध विकल्प। १६६३-६८. जीवित अवस्था में पूर्व आचार्य द्वारा नए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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