SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० ] व्यवहार भाष्य ७८२. ७३. ७८४. ७१५. ७५,७८६. ७८७. ७८८,७८६. ७६०. ७६१,७६२. ७६३. ७६४. ७६५,७६६. ७६७. ७६८-८०६. ८०७. ८०८ ७२६. ८०६ ८१०. ८११. ७०६-११. वाद करने का विवेक-दान। ७१२. वाद किसके साथ? ७१३. जीतने के पश्चात् स्व-समय की प्ररूपणा करने का निर्देश। ७१४. राजा यदि स्वयं वाद करने की इच्छा प्रकट करे तब मुनि का कर्तव्य। वाद किन-किन के साथ नहीं करना, इसका निर्देश। ७१६. नलदाम का दृष्टान्त। ७१७,७१८ वाद की सम्पन्नता के पश्चात् एक दो दिन वसति में रहने का निर्देश। ७१६२१. समस्त गण का निस्तारण न कर सकने की स्थिति में आचार्य आदि पंचक का निस्तारण। ७२२,७२३. साधुओं की निस्तारण-विधि । ७२४,७२५. साध्वियों की निस्तारण-विधि । साधु-साध्वी दोनों की निस्तारण विधि। ७२७,७२८. भिक्षु, क्षुल्लक आदि के निस्तारण का क्रम। ७२६७३०. भिक्षुक आदि के क्रम का कारण। ७३१-३३. भिक्षुकी क्षुल्लिका के क्रम का कारण। ७३४-४२. संयमच्युत साधु-साध्वियों का निस्तारण-क्रम। ७४३. क्षुल्लक आदि के क्रम का प्रयोजन। ७४४-४७. दुर्लभ भक्त निस्तारण-विधि । ७४८७४६. भक्त-परिज्ञा और ग्लान। ७५०-५४. वृषभ, योद्धा और पोत का दृष्टान्त। ७५५. भक्त प्रत्याख्यात व्यक्ति की सेवा के बिन्दुओं का निर्देश। ७५६-६०. वादी के लिए करणीय कार्यों का निर्देश। ७६१-६७. परिहारतप का निक्षेपण कब? कैसे? ७६८७६६. प्रतिमा-प्रतिपन की सामाचारी। ७७०. दृष्टान्तों द्वारा एकाकी विहार प्रतिमा के लिए योग्य-अयोग्य की चर्चा। ७७१-७४. शकुनि और सिंह का दृष्टान्त तथा उपनय। ७७५,७७६. परिकर्मकरण सामाचारी का निर्देश। ७७७. . प्रतिमाप्रतिपन्न मुनि की तप, सत्त्व आदि पांच तुलाएं। ७७८,७७६. तपो भावना। ७०. सत्त्व भावना। ७८१. सूत्र भावना। एकत्व भावना। बल भावना। सहस्रयोधी की कथा। परिकर्मित का तपस्या द्वारा परीक्षण। बलभावना। प्रतिमाप्रतिपत्ति के लिए आचार्य को निवेदन। गृहिपर्याय ओर व्रतपर्याय का काल-निर्देश । परिकर्म के लिए अनेकविध पृच्छा। आत्मोत्थ, परोत्थ तथा उभयोत्थ परीषह। शैक्ष को एडकाक्ष की उपमा। देवता द्वारा आंख का प्रत्यारोपण। भावित और अभावित के गुण-दोष। प्रतिमा-प्रतिपत्ति की विधि और उसके बिन्दु। आचार्य आदि की प्रतिमा-प्रतिपत्ति विधि। प्रतिमा की समाप्ति-विधि और प्रतिमाप्रतिपन्न का सत्कारपूर्वक गण में प्रवेश। सत्कारपूर्वक गण में प्रवेश कराने के गुण। अधिकृत सूत्र का विस्तृत वाच्यार्थ। सत्कार-सम्मान को देख अव्यक्त मुनि प्रतिमा स्वीकार करने के लिए व्यग्र। रानी का संग्राम के लिए आग्रह करना। अव्यक्त के लिए प्रतिमा का वर्जन। आचार्य द्वारा निषेध करने पर प्रतिमा स्वीकार करने का परिणाम और प्रायश्चित्त। भयग्रस्त भिक्षु द्वारा पत्थर फेंकने से होने वाले दोष तथा प्रायश्चित्त। देवता कृत उपसर्ग। बहुपुत्रा देवी का दृष्टान्त। पुरुषबलि का दृष्टान्त। देवताकृत अन्य उपद्रवों में पलायन करने का प्रायश्चित्त। देवीकृत माया में मोहित श्रमण को प्रायश्चित्त। अन्यान्य प्रायश्चित्तों का विधान। राजा और योद्धाओं के दृष्टान्त का निगमन तथा विविध प्रायश्चित्तों का विधान। निंदा और खिंसना के लिए प्रायश्चित्त। अननुज्ञात अभिशय्या से निर्गमन प्रतिषिद्ध । पार्श्वस्थ, यथाछंद आदि पांचों के नानात्व ८१२.. ८१३. ८१४-१६. ८१७,८१८ ८१६ ८२०. २१. ५२२,८२३. ८२४,८२५. ८२६. ८२७३१. ३२. ८३३. ३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy