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विषयानुक्रम
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५७५,५७६. प्रतिसेवना और आलोचना की चतुभंगी। ५७७ प्रथम पूर्वानुपूर्वी की व्याख्या। ५७८,५७६. पूर्वोक्त चतुर्भंगी का स्पष्टीकरण । ५८०-८४. प्रतिकुंचना-अप्रतिकुंचना की चतुर्भगी, व्याध,
गोणी और भिक्षुकी का दृष्टान्त।
शुद्धि का उपाय मायारहित आलोचना। ५८६.
तीन प्रकार के आचार्य और तीन प्रकार के
आलोचनाह। ५८७६६. स्वस्थानानुग तथा परस्थानानुग के आधार पर
आचार्य के नौ भेद तथा प्रायश्चित्त की
विविधता। ५६७५६८ प्रायश्चित्त देने की प्रस्थापना के भेद-प्रभेद। ५६६-६०३. आरोपणा के पांच प्रकारों की व्याख्या। ६०४.
प्रायश्चित्त वहन करने वालों के दो
प्रकार-कृतकरण तथा अकृतकरण। ६०५. अकृतकरण के दो भेद। ६०६. प्रायश्चित्तवाहक के दो भेद। ६०७११. कृतकरण के स्वरूप की व्याख्या। ६१२-१६. निरपेक्ष का एक और सापेक्ष के तीन भेद क्यों? ६१७२३. भंडी और पोत का दृष्टान्त। ६२४. पारिहारिक और अपारिहारिक की सामाचारी। ६२५,६२६. पारिहारिक कौन का समाधान। ६२७. छलना के दो प्रकार। ६२८ भावछलना की व्याख्या और प्रकार। ६२६३१. नैषेधिकी और अभिशय्या की चर्चा । ६३२. नैषेधिकी और अभिशय्या में निष्कारण जाने
से प्रायश्चित्त। ६३३-३८ वसतिपालक के अभिशय्या में जाने से दोष । ६३६४३. निष्कारण अभिशय्या अथवा नैषेधिकी में जाने
के दोष। ६४४-४८ कारण से अभिशय्या में न जाने का प्रायश्चित्त। ६४६ अभिशय्या में जाने का निषेध। ६५०. अभिशय्या में नायक कौन? ६५१,६५२.. अगीतार्थ को नायक क्यों और कैसे? ६५३-५७ असामाचारी के दोषों का निरूपण। ६५८ सम्यक् प्रायश्चित्त-दान का दृष्टान्तों द्वारा
कथन। ६५६६६०. अधिक प्रायश्चित्त देने के अलाभ।
६६१. प्रायश्चित्त उतना ही जितने से शोधि हो। ६६२-६४. प्रायश्चित्त न देने से हानि में व्याध का
दृष्टान्त। ६६५. प्रायश्चित्त न देने वाले आचार्य का अधःपतन। ६६६-६६ उचित प्रायश्चित्त देकर शोधि कराने वाले
आचार्य की सुगति। अंतःपुरपालक का
दृष्टान्त। ६७०. अभिशय्या में जाने की आपवादिक विधि। ६७१-७५. अभिशय्या में जाने की यतना का निर्देश। ६७६. अभिशय्या में जाने का अन्य मुनियों को
निर्देश। ६७७६७८. प्रतिषिद्ध अभिशय्या का अपवाद तथा वृषभों
की स्वीकृति।
अभिशय्या और नैषेधिकी के भेद। ६८०. अभिनषेधिकी और अभिशय्या का स्वरूप। ६८१. शय्यातर को पूछकर अभिशय्या में जाने का
समय। ६८२. आवश्यक सम्पन्न करके अभिशय्या में जाने
का निर्देश। ६८३.
अभिशय्या में रात्रि में न जाने के कारणों का
निर्देश। ६८४,६८५. आवश्यक को पूर्ण कर या न कर अभिशय्या
में जाने का विधान। ६८६-८६.
अभिशय्या से लौटने पर करणीय कार्य। ६६०.
परिहार सामाचारी। ६६१. भिक्षु शब्द की चालना और प्रत्यवस्थान से
व्याख्या। ६६२,६६३. वैयावृत्त्य करने में गणी, आचार्य आदि के
प्रतिषेध का कारण और समाधान। ६६४,६६५. पारिहारिक अन्य गच्छ में क्यों जाए? कारणों
का निर्देश। ६६६-६६ पारिहारिक मुनि के माहात्म्य का अवबोध तथा
आचार्य का कर्तव्य। ७००-७०२. कार्य की प्राथमिकता में व्रण का दृष्टान्त और
उपनय। ७०३,७०४. पारिहारिक के साथ कौन जाए? ७०५-७०८. कारणवश पारिहारिक
कारणवश पारिहारिक तप छोड़ने वाले मुनि की चर्या का निर्देश।
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