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विषयानुक्रम
[११७
३२६..
३२७. ३२८
३२६,३३०.
३३१.
३३२..
३६१.
३३३-३५.
३३६,३३७.
३३८ ३३६-४१.
प्रश्न तथा आचार्य का समाधान। आगम श्रुतव्यवहारी के प्रायश्चित्त दान का औचित्य। तीन दृष्टान्त-गर्दभ, कोष्ठागार और खल्वाट। प्रायश्चित्त-दान की विविधता का हेतु अर्हद्-वचन। प्रतिसेवना की विषमता में भी प्रतिसेवक के भेद से तुल्यशोधि में पांच वणिक और पन्द्रह गधों का दृष्टान्त। प्रायश्चित्त भित्र, शोधि समान। गीतार्थ और अगीतार्थ के विषम प्रायश्चित्त संबंधी शिष्य का प्रश्न तथा आचार्य का उत्तर । दंडलातिक दृष्टान्त का विवरण और उसका उपनय। विषम प्रायश्चित्त संबंधी शिष्य का प्रश्न, आचार्य का उत्तर। खल्वाट के दृष्टान्त का उपनय। प्रतिसेवक के परिणाम के आधार पर प्रायश्चित्त
और उसका फल। दण्ड ग्रहण करने व न करने पर साधु के लाभ-अलाभ। दण्ड ग्रहण करने व न करने पर गृहस्थ के लाभ-अलाभ। मूल विषयक शिष्य की शंका और आचार्य का विकल्प प्रदर्शन द्वारा समाधान। उद्घात, अनुद्घात आदि के विविध संयोगों के विकल्प। प्रायश्चित्त की वृद्धि-हानि विषयक चर्चा । प्रायश्चित्त में वृद्धि-हानि का आधारसर्वज्ञ-वचन। बहुक के प्रकार तथा जघन्य और उत्कृष्ट बहुक के विकल्प। द्वारगाथा द्वारा स्थापना, संचयराशि आदि का कथन। स्थापनारोपण के तारतम्य का हेतु। अपरिणामक को स्थापनारोपण से प्रायश्चित्त न देने में दोष। अतिपरिणामक को स्थापनारोपण से प्रायश्चित्त
न देने में दोष। ३५६. चार प्रकार के स्थापना स्थान तथा आरोपणा
स्थान। ३५७. किस जघन्य स्थापना स्थान में जघन्य
आरोपणा स्थान। ३५८ जघन्य स्थापना बीस रात दिन, उत्कृष्ट स्थापना
एक सौ पैंसठ दिन रात। ३५६ जघन्य और उत्कृष्ट आरोपणा का कालमान
तथा पांच-पांच दिन का प्रक्षेप। ३६०. स्थापना तथा आरोपणा में चरमान्त तक
पांच-पांच की वृद्धि।
उत्कृष्ट आरोपणा की परिज्ञान-विधि। ३६२.
आरोपणा स्थान में उत्कृष्ट स्थापना का
परिज्ञान। ३६३. प्रथम स्थान में स्थापना स्थान और आरोपणा
स्थान आदि कितने? ३६४,३६५. संवेध संख्या जानने का उपाय। ३६६,३६७. स्थापना तथा आरोपणा के पदों का परिज्ञान। ३६-४३१. स्थापना एवं आरोपणा का विविध दृष्टियों से
विमर्श। ४३२.
अतिक्रम, व्यतिक्रम आदि के गुरु, गुरुतर का
विवेक। ४३३.
प्रायश्चित्त का विधान अतिक्रम आदि के
आधार पर। ४३४. सूत्र में अभिहित सभी प्रायश्चित्त स्थविरकल्प
के आचार के आधार पर। ४३५. निशीथ का परिचय। ४३६,४३७. निशीथ के उन्नीस उद्देशकों में प्रतिपादित दोषों
का एकत्व कैसे? प्रश्न और आचार्य का
समाधान। ४३८
दोषों के एकत्व विषयक घृतकुटक तथा
नालिका दृष्टान्त। ४३६४२.
दोषों के एकत्व विषयक औषध का दृष्टान्त। ४४३. चतुर्दशपूर्वी के आधार पर दोषों का एकत्व
तथा प्रायश्चित्त-दान।
नालिका से कालज्ञान की विधि। ४४५. जाति के आधार पर दोषों का एकत्व। ४४६-५२. अनेक अपराधों का एक प्रायश्चित्त : अगारी
३४२.
३४३.
३४४,३४५.
३४६,३४७.
३४८ ३४६
३५०.
३५१.
३५२,३५३. ३५४.
३५५.
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