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११४]
व्यवहार भाष्य
११६.
पहले प्रस्थापना फिर उद्देश आदि का
समाधान। ११७११८ वस्त्रादि के स्खलित होने पर नमस्कार महामंत्र
का चिंतन अथवा सोलह, बत्तीस आदि
श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग। ११६ प्राणवध आदि में सौ श्वासोच्छ्वास का
कायोत्सर्ग। १२०. प्राणवध आदि में २५ श्लोकों का ध्यान तथा
स्त्रीविपर्यास में १०८ श्वासोच्छ्वास के
कायोत्सर्ग का प्रायश्चित्त। १२१. उच्छ्वास का कालमान-श्लोक का एक चरण। १२२,१२३. कायोत्सर्ग में कौन सा ध्यान-कायिक, वाचिक
या मानसिक? प्रश्न तथा उत्तर। १२४. कायोत्सर्ग के लाभ १२५,१२६. तपोर्ह प्रायश्चित्त का कथन तथा उसके विविध
७६.
प्रकार।
१२७-३४. १३५.
चारित्र विनय के आठ प्रकार। प्रतिरूप विनय के भेद, प्रभेद ।
कायिक विनय के आठ प्रकार। ६८ वाचिक विनय के चार प्रकार।
ऐहिक हितभाषी का स्वरूप। परलोक हितभाषी का स्वरूप। अहितभाषित्व का कथन । मितभाषिता का स्वरूप। अपरुषभाषिता का स्वरूप। प्रासंगिकभाषिता की सफलता। अप्रासंगिकभाषिता का स्वरूप। अनुविचिन्त्यभाषिता।
मानसिक विनय के दो भेद। ७-८४. औपचारिक विनय के सात भेद तथा उनका
विस्तृत विवेचन। स्वपक्ष और विपक्ष में किया जाने वाला लोकोपचार विनय।
प्रतिरूप विनय के भेद तथा उनका वर्णन। ८७-६०. अनुलोमवचन का अनुपालन। ६१,६२. प्रतिरूपकायक्रिया विनय। ६३. विश्रामणा (शरीर चांपने) के लाभ। ६४,६५.
गुरु के प्रति अनुकूल-वर्तन के दृष्टान्त। अप्रशस्त समिति, गुप्ति के लिए प्रायश्चित्त का
विधान। ६७. गुरु के प्रति उत्थानादि विनय न करने पर
प्रायश्चित्त का उल्लेख। ६८. प्रतिक्रमणार्ह प्रायश्चित्त। ६६-१०५.
तदुभय प्रायश्चित्त का वर्णन। १०६,१०७. महाव्रत अतिचार सम्बन्धी तदुभयाई प्रायश्चित्त
का कथन। १०८,१०६. विवेकाह प्रायश्चित्त । ११०.
व्युत्सर्गार्ह प्रायश्चित्त। १११-१३. कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त का विषय, परिमाण, कब
और क्यों का समाधान। ११४. उद्देश, समद्देश आदि में कितने श्वासोच्छ्वास
का प्रायश्चित्त। पहले उद्देश तथा पश्चात् प्रस्थापना का उल्लेख।
१३६-३६ १४०. १४१-४३.
।
१४४. १४५-४८ १४६,१५०. १५१.
मासिक आदि विविध प्रायश्चित्तों का विधान। मूल, अनवस्थित और पारांचित प्रायश्चित्त के विषय। प्रतिसेवना प्रायश्चित्त का औचित्य । आरोपणा प्रायश्चित्त का कालमान। आरोपणा प्रायश्चित्त छह मास ही क्यों? धान्य पिटक का दृष्टान्त किसके शासनकाल में कितना तपःकर्म ? विषम प्रायश्चित्त दान में भी तल्य विशोधि । प्रतिकुंचना प्रायश्चित्त के भेद-प्रभेद। बृहत्कल्प और व्यवहार दोनों सूत्रों में विशेष कौन? दोनों के अभिधेय भेद का दिग्दर्शन तथा विविध उदाहरण। कल्प और व्यवहार में प्रायश्चित्त दान का विभेद। अभिन्न व्यंजन में भी अर्थभेद। शब्द-भेद से अर्थ-भेद। प्रायश्चित्तार्ह पुरुष। कृतकरण के भेद-सापेक्ष तथा निरपेक्ष । निरपेक्ष कृतकरण के तीन भेद। अकृतकरण के दो भेद-अनधिगत तथा
१५२,१५३.
१५४.
१५५. १५६. १५७,१५८
१५६
११५.
१६०.
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