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विषयानुक्रम
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३५.
३६.
ॐ
३७,३८
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३६
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८६ १०-१२.
१३.
१४.
१७,१८
१६
व्यवहार, व्यवहारी एवं व्यवहर्त्तव्य की प्ररूपणा। ज्ञानी, ज्ञान और ज्ञेय की मार्गणा तथा 'व्यवहार' शब्द का निरुक्त। वपन एवं हार शब्द के एकार्थक। व्यवहार की परिभाषा। व्यवहार शब्द के निक्षेप। भावव्यवहार के एकार्थक। एकार्थकों में पांचों व्यवहारों का समवतार। जीतव्यवहार के आधार पर प्रायश्चित्त-विधि। व्यवहारी के निक्षेप। भावव्यवहारी का स्वरूप। प्रायश्चित्त दाता के चार गुण। निश्रा तथा उपश्रा शब्द की व्याख्या। लौकिक व्यवहर्त्तव्य का स्वरूप। लोकोत्तरिक व्यवहर्त्तव्य का स्वरूप। भावव्यवहर्त्तव्य का स्वरूप, प्रकार एवं उसके गुण। प्रकारान्तर से भावव्यवहर्त्तव्य के लक्षण। द्रव्य व्यवहर्त्तव्य के लक्षण। अव्यवहर्त्तव्य के अन्तर्गत कुंभार का दृष्टान्त। व्यवहर्त्तव्य के अधिकारी। अगीतार्थ के साथ व्यवहार करने का निषेध । गीतार्थ की व्यवहार ग्रहण सम्बन्धी योग्यता का वर्णन। उदाहरण द्वारा गीतार्थ की विशेषता का वर्णन। प्रायश्चित्त के समय व्यवहर्त्तव्य का सीमाविस्तार। अगीतार्थ को पहले उपदेश तथा बाद में प्रायश्चित्त देने का विधान। प्रायश्चित्त के निरुक्त, भेद आदि के कथन की
प्रतिज्ञा। प्रायश्चित्त के निरुक्त। प्रायश्चित्त के चार भेद। प्रतिसेवक, प्रतिसेवना एवं प्रतिसेवितव्य का स्वरूप कथन। प्रतिसेवना के प्रकार। प्रतिसेवना और प्रतिसेवक का एकत्व तथा नानात्व। मूलगुण तथा उत्तरगुण विषयक प्रतिसेवना की व्याख्या। अतिक्रम, व्यतिक्रम आदि के भेद से उत्तरगुण प्रतिसेवना के चार प्रकार। अतिक्रम, व्यतिक्रम आदि का उदाहरण द्वारा स्वरूप-कथन। अतिक्रम आदि के लिए प्रायश्चित्त विधान। मूलगुण प्रतिसेवना के पांच भेद। संरंभ, समारंभ और आरंभ की परिभाषा। शुद्ध, अशुद्ध नयों का प्रतिपादन और मीमांसा। पहले उत्तरगुण प्रतिसेवना की व्याख्या क्यों? प्रश्न और समाधान। प्रतिसेवना प्रायश्चित्त के दस भेदों का उल्लेख। आलोचना प्रायश्चित्त का विवेचन। आलोचना प्रायश्चित्त की इयत्ता और आलोचना किसके पास? आलोचना प्रायश्चित्त का पात्र। आलोचना प्रायश्चित्त कब? कैसे? क्यों? प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त का विवेचन। प्रतिरूप विनय के चार प्रकार। ज्ञान विनय के आठ प्रकार। दर्शन विनय के आठ प्रकार।
२०-२२.
४५.
४६.
२३.
४७५०.
५१.
५२,५३.
५६.
२६,३०. ३१,३२.
५७५६. ६०,६१.
३३.
६२.
६३.
३४.
६४.
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