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क० १२, १-१०, १३, १-९]
जुज्झकण्डं-अट्ठवण्णासमो संधि [१३
[१२] तं णिसुणेवि समरें' अभङ्गएण पुणु पुणु वि पवोल्लिउ अङ्गएण १ 'भो रावण किं गलगज्जिएण णिप्फलेंण परक्कम-वजिएण ॥२ भणु सीय ण देन्तहाँ कवणु लाहु 'किं जो सो सजण-हियय-डाहु ॥ ३ किं जो सो सम्वुकुमार-णासु किं जो सो पर-गय-सूरहासु ॥४ । किं जो सो चन्दणहीसवञ्च किं जो सो खर-वल-वलि-विरञ्च ॥ ५ किं जो सो आसालन्तकालु किं जो सो विणिहय-कोहवाल ॥६ कि जो सो पवरुज्जीण-भङ्ग किं जो सो हेउ वलु चाउरङ्ग ॥ ७ किं जो सो उप्परि दिण्णु पाउ किं जो सो मोडिउँ घर-णिहाउ ॥८ किं जो सो एक्को घर-विभेउ किं जो सो कल्लएँ पाण-छेउ' ॥ ९ ॥
॥घत्ता ॥ तं णिसुणेवि रावणु भय-भीसावणु अमरिस-कुद्धउ अङ्गन्यहों। उद्भूसिय-केसरु णहर-भयङ्करु जिह पञ्चमुहु महग्गेयहों॥१०
[१३] 'महु अग्गएँ भड-चक्केहिँ काइँ सङ्कन्ति जासु रणे सुर-सयाइँ॥१ ॥ दाहिणे करें कड्डिएँ धन्दहासें मइँ सरिसु कवणु तिहुअणे असेसें ॥२ किं वरुणु पवणु वइसवणु खन्दु किं हरि हरु वम्भु फणिन्दु चन्दु ॥ ३ जं चुक्कइ हरु तं कलुंणु भाउ मं गउरिहें होसइ कहि मि घाउ ॥४ जं चुक्कइ वंम्भु महन्त-वुद्धि तं किर वम्भणे मारिऍ ण सुद्धि ॥ ५ जं चुक्कइ जमु जेण-सण्णिवाउ तं को किर एत्तिउ लेइ पाउ ॥
६ ० जं चुक्कइ ससि सारङ्ग-धरणु तं किर रयणिहें उज्जोय-करण ॥ ७ जं तवइ भाणु ववगय-तमालु तं किर ऍहुँ पञ्चमु लोयपालु ॥८
॥घत्ता॥ . दिट्ठऍ रहुणन्दणे स-धऍ स-सन्दणे जइ एक वि पउ ओसरमि । तो भय-भीसाण, (१) धगधगमाणहै (?) हुअवह-पुों पईसरमि' ॥ ९ 25
12. 1 A समर अहं गएण. 2 F S विफलेण. 3 P S A देंतहु. 4 A पर. 5 P "विरंभु, A विरिंच. 6 P S °रुज्जाणु भग्गु. 7 Ps वलु हउ, A हयवल. 8 A मोडिय.9 Ps उद्धूलिय. 10 A पंचाहुं. 11 P s महागयहो, A महग्गए.
13. 1 P s °वोक्केहि. 2 P S कड्डिय", A कट्टिए. 3 A °खंडु. 4 Ps करुणु. 5 Ps कहि वि, A कहिं मि. 6 P वम्हु, s वंम्हु. 7 P S भण. 8 P s पंचमु एहु. 9 PS °भीसाणहि. 10 P हुअवहे, हुयवहे. . .[१२] १ विभीषण-विमेदः. [१३] १ कार्तिकेयः. २ जनसंतापकारी अतीव पापी मन्त्रा. ३ मृगधारकः,
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