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________________ [क०१४,१-९,१५,१-८ १४] सयम्भुकिउ पउमचरिउ [१४] तियसिन्द-विन्द-कन्दावणेण जं सन्धि न इच्छिय रावणेण ॥१ तं इन्दइ-मुहें णीसरिउ वक्कु ‘पर सन्धिहें कारणु अत्थि एकु ॥२ जइ मणे परियच्छेवि पउमणाहु आमेल्लइ सीयहें तणउ गाहु ॥ ३ 5 तो तहाँ ति-खण्ड महि एक्क-छत्त चउरद्ध णिहिउ रयणाई सत्त ॥ ४ सामन्त-मन्ति-पाइक्क-तन्तु रहवर-णरवर-गय-तुरय-वन्तु ॥ ५ अन्तेउरु परियणु पिण्डवासु स-कलत्तु स-वन्धउ हउ मि दासु ॥६ कुस-दीउ चीर-वाहणु असेसु वजरउ चीणु छोहारन्देसु ॥७ ववरउलु जवणु सुवण्ण-दीउँ वेलन्धरु हंसु सुवेल-दीउँ ॥८ ॥घत्ता ॥ अण्णइ मि पएसइँ लेउ असेस' गिरि वेयर्दु जाम्व धरैवि । रावणु मन्दोयरि सीय किसोयरि तिर्णिं वि वाहिराइँ करेंवि' ॥९ [१५] तं णिसुणेवि रोस-वसं-गएणणिब्भच्छिउ इन्दइ अङ्गएण ॥१ 15 'खल खुद्द पिसुण पर-णारि-ईह सय-खण्ड केव॑ तउ.ण गय जीह ॥ २ जसु तणिय घरिणि तासु ले ण देहि राहवें जियन्ते जम्मॅवि ण लेहि ॥ ३ जो रक्खइ पर-परिहव-सयाइँ सो णिय-कजें ओसरइ काइँ ॥४ जे दिण्ण विहीसण-हरि-वलेहिँ सुग्गीव-हणुव-भामण्डलेहिँ ॥ ५ सन्देसा ते वजरेवि तासु गउ अङ्गउ वल-लक्खणहँ पासु ॥ ६ 2. 'सो रावणु सन्धि ण करइ देव सहुँ सरेण अंमी-ईयारु जेम्व' ॥७ ॥ घत्ता ॥ तं णिसुणेवि कुद्धेहि जय-जस-लुद्धेहिँ कइकइ-अपरजिय-सुऍहि । वेहि मि वे चावइँ अतुल-पयावइँ अप्फालियइँ से इं भु ऍहिँ॥ ८ 14. 1 A सीयह तणउं. 2 A सावंत'; missing in s. 3 °असेसतंतु. 4 P °दीवु. 5Pg वेय. 6 A विण्णि . 15. 1 A सियलखंडु. 2 PS णियय".3 SA कजे. 4 P जें, जिं. 5 PS 'लक्खणहु. 6A समीईकारु. 7 PS विहि कुद्धेहिं (s °हि). 8 A अपराजिय. 9 सयं, A सइ. [१४] १ रामः. २ समूहम्. [१५] १ कामेन सह 'अमियारु' जिनः । अथवा, 'अमी' शब्दः स्वरेण सह यथा ईकारः संधिं न इच्छते. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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