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________________ क० १२, १-९, १, १-९] जुज्झकण्ड-अट्ठवण्णासमो संधि [७ [१२] जय-जय-सवें मिलिउ विहीसणु विहि मि परोप्पर किउ संभासणु ॥१ भणइ रामु ‘णउ पइँ लज्जावभि 'णीसावण्ण लङ्क भुञ्जावमि ॥२ सिरु तोडमि रावणहों जियन्तों संपेसमि पाहुणउ कयन्तहाँ' ॥३ तेण वि वुत्तु 'भडारा राहव . सुहड-सीह णिबूढ-महाहव ॥ ४ जिह अरहन्त-णाई पर-लोयहों तिह तुहुँ सामिसालु इह-लोयहाँ ॥५ । एव जाम्ब पचवन्ति परोप्परु ताम 'विदेहहें णयण-सुहङ्करु ॥ ६ अक्खोहणि-सहांसु भामण्डलु णाइँ सुरहिँ समाणु औखण्डलु ॥७ आउ णहङ्गणे णाणा-जाणेहिँ मणि-मोत्तिय-पवाल-अपमाणेहिँ ॥ ८ । घत्ता ॥ मणे परितुढे राहवेण णरवइ-विन्दु सयलु ओसारेवि । अवरुण्डिउ पुप्फवइ-सुई सरहसु स इँ भु अ-जुअलु पसारेंवि ॥ ९ [५८. अट्ठवण्णासमो संधि ] भामण्डलें भीसणे मिलिए विहीसणे कुणय-कुबुद्धि-विवजियउ। अत्थोणे दसासहों लच्छि-णिवासहों अङ्गउ दूउ विसजियउ॥ 15 [१] वलए पभणिउँ जम्बवन्तु 'एत्तियहुँ मज्झें को वुद्धिवन्तु ॥१ किं गवउ गवक्खु सुसेणु तारु किं अञ्जणेउ रणे दुण्णिवारु ॥ २ किं णलु किं णीलु किमिन्दु कुन्दु किं अङ्गउ किं पिहुमइ महिन्दु ॥ ३ किं कुमुउ विराहिउ रयणकेसि किं भामण्डलु किं चन्दरासि ॥ ४ ॥ जं एव पपुच्छिउ राहवेण विण्णविउ णवेप्पिणु जम्बवेण ॥ ५ 'पेसणे सुसेणु विणए वि कुन्दु पञ्चङ्गे मन्तें मइसमुद्दु ॥ ६ अङ्गाय दूअत्तणे महत्थ णल-णील पयाणऍ सई समत्थ ॥ ७ महुमहणु हणुवु आहव-वमाले . सुग्गीउ तुहु मि पुणु विजय-कालें ॥८ ॥ घत्ता ॥ 25 तं णिसुणेवि रामें णिग्गय-णामें अङ्गाउ जोत्तिउ दूअ-भरें। 'भषु "किं वित्थारें समउ कुमारे अज वि रावण सन्धि करें"॥९ 12. 1A रामणहो. 2 A पाहुणउं. 3 P S कियंतहो. 4 PS जाव. 5 P विदेहिहे, s विदेहहि. 6 A आहंडलु. 7 A सु. 8 Wanting in A. 1.1 PS सत्थाणु. 2 A reads ध्रुवकं at the end of this line. 3 A पभणिउं. 4 PS मइंदु. 5 P विणएज, S विणयेण. 6 Wanting in A. [१२], समस्त. [१] १ संग्रामकाले कलकलावते. २ विख्यातः. ३ लक्ष्मणकुमारेण सह. है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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