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क० ४, १-८; ५, १–७ ]
पुणु वि गरुड संतोउ 'विहीसणें काइँ गरिन्दsप्पाणउँ 'सोसंहि जणय-विदेहि-धीय पेइ - सारिय एह ण सीय वेणें यि भल्ली एह ण "सीय सोय-संपत्ती एह ण सीय दाढ वर - सी हहों एह सीय जीह जमराय हों
तं सुणेवि सत्तत्त-मद्दणो रयणासव-वंसोहिणन्दणो इन्दई णिय-मणे विरुद्धओ हुअहो व जालोलि भासुरो केसरि व उद्धसिय-कॅन्धरो 'तं विहीणा पइँ पजम्पियं
जुज्झकण्डं - सत्तवण्णासमो संधि [३
[ ४ ]
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काइँ णिवारिउ ण किउ विहीसणें ॥ १ एपि विसोसहि ॥ २ पइँ सयणहुँ भवित्ति पइसारिय ॥ ३ सहुँ हियएँ पट्टिय भैली ॥ ४ लङ्कहें वज्जासणि 'संपत्ती ॥ ५
गय- गण्डस्थल-वल-सी ॥ ६ केवल हाणि जैसुज्जम - रायहों ॥ ७
हि रामु पमायहि जुज्झु ।
णन्दउ लङ्क स-तोरणिय जाणइ सिविणी - रिद्धि जिह णं हुअ ण होइ ण होसइ तुज्झु' ॥ ८
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॥ घत्ता ॥
[५]
स- पुरन्दर - विजयन्त-मद्दणो ॥ १ देहमुह - दिविसा हि णन्दणो ॥ २ जेण हर पहरेविरुद्धओ ॥ ३ हसणें व कुइओ वि भासुरो ॥ ४ पासो व उण्णइय-कं-धरो ॥ ५ दहमुहस्स ण कर्याइ जंपियं ॥ ६
॥ घत्ता ॥
को सो लक्खणु को किर रामु । जइ तहाँ अप्पिय जणय-सुय तो हउँ ण वहमि इन्दइ णामु' ॥ ७
कोतुहुँ के वोलीविय
4.
Ps संतविड. 2P पणु, पाणु. 3PS वि सोसहि, 4 सोसहिं. 4 A पइट्ठवि से सहि. 5 P सब्वहु, S सव्वहो, A सव्वहं. 6 Ps पइडी. 7 A व्व हलसीहहो. 8 P s सुइणा.° 9 P s A गहु अण्ण.
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5. 1 Ps इंदई. 2 P s अइविरुद्ध उ. 34 हरि सनो. 4 A इ. 5P उद्धुसिय, 9 उड्डुसिय'. 6 A पाउसे. 7 PA कयाई. 8 P s वोल्लाविउ . 9 A ण वहमि हउं.
[४] १ है विगतभीः. २ कदर्थयसि. ३ विषौषधीः. ४ भर्तुः रामस्योत्तमा, अथवा पतिः सारो यस्याः सा पतिसारिका. ५ वने स्थिता न मनोज्ञा. ६ काण्डविशेषः ७ नैषा श्रीः. ८ ते शोक-संपदेयम्. ९ संप्राप्ता. १० बहुलं प्रचुरं रसो रक्तमीहते यः. ११ यशस्योद्यमस्य राज्यस्य त्रयाणां हानिः १२ अनुनीयसि (?).
[५] १ शत्रोः भावः शत्रुत्वं शत्रुत्वं विद्यते येषां ते शत्रुत्वमन्तः, तेषां 'दणो' दानवः, २ अभिवृद्धिकारकः. ३ दशमुख इव दृष्टिविष - सर्पः, तस्य नन्दनः पुत्रः ४ महादेवः शब्दे कुपितोऽपि भासुरो यथां गौरीरतिकाले. ५ ग्रीवा. ६ मेघो अन्नाशाद् भिन्न प्रहृष्टं कम आत्मानम् धरतीति उद्भिन्नकंधरो.
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