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________________ क० ५, ६-९; ६, १–१०, ७, १-८ ] महु कारणें रयणारु लडि परिपेसिउ अङ्ग महु कारण इन्दर वन्धेवि रणें वाविड महु कारण लङ्का-गाहु तें मइँ हुँ राहूवनन्द तर पेक्खन्तों ववणु गइय तयहुँ विहरन्ती गुण- भरिया पुणु तेहि वोल्लिउ "दय करहि जें सो भत्तारु तुरिउ वरहुँ तो एत्थन्तरे सुरवइ-कियउ दस-सय-सङ्घउ वरं भामिणिउ tors मणहरु गायन्तियउ अण्णउ चउदिसेंहिं णंडन्तियउ कुङ्कुम-चच्चिक्क करन्तियज जं केम वि दुरिय-खयङ्करासु तं माह-मासें सिय-पक्खें पवरें तो विअन्ति ( म्भि ? उ णिम्मल-झाणु थिलि रामु मुणिन्दु - घी- कम्म जिणियावसाणु खणें केवल चक्खु जाउ सयलु सहसा च देव - णिकाउ आउ • किथं भत्तिएँ वन्दण 'जाणवज्ज तो ताव 'सम्पह-णामु एव णविउत्तम सो भइ एव उत्तरकण्ड - णवासीमो संधि [२७९ [७] १. अनवद्या या. जिउ हंसरहु सेउ आसङ्घि ॥ ६ मारि हत्थ - हत्थ महारणें ॥ ७ नारायणु सत्तिऍ भिन्दाविउ ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ विणिवाइड समरें | अविचल रज्जु करें ॥ ९ [६] जइय हुँ सहसा हउँ पव्वइय ॥ १ विजाहर कण्णेहिं अवयरिया ॥ २ दरिसावहि अम्हहुँ दासरहि ॥ ३ पइँ - मुंह गम्प कील करहुँ" ॥ ४ णाणालङ्कार - विहूसियउ ॥ ५ पत्तं स-विलास कामिणिउ ॥ ६ tore वीउ वायन्तियउ ॥ ७ स- कडक्ख दिट्टि पडन्तियउ ॥ ८ tors aणहरु दरिसन्तियउ ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ Jain Education International 6. 1P कंतेहिं, s° कंतिहि. 2 P समुहउं, s सहुमुहउ 3 Ps मण. 5 AT. 6 P. २ सीतेन्द्रः. हय-परिसह वरि । णावइ मेरु- गिरि ॥ १० [७] मणु टलिउ ण राहव - मुणिवरासु ॥ १ वारसि-दिणें णिसिहें उत्थ-पहरें ॥ २ उपणु समुज्जलु परम-णाणु ॥ ३ गोपय समु लोयालोय-जुअलु ॥ ४ अइ-गरुअ-विहूइऍ अमर-राउ ॥ ५ वर केवल - णाणुष्पत्ति-पुज्ज सीएन्दु केवलचण करेवि ॥ ७ 'मइँ तुम्हें अण्णाणेण देव ॥ ८ ६ 7. 1 The portion from चउ° up to सयलु ( line 4 a) is omitted in A. 2 A 3. 4 Ps एत्तउ. For Private & Personal Use Only 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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