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२८०] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क०७,९,८,१-१३:९, १-२
॥ घत्ता
॥
'जो अविणय-वन्ते सुट्ट गुरु अवराह किय । ते सयल खमेजहि सिग्घु तिहुअण-जण-णमिय' ॥ ९
[८] 5 अप्पाणउ गरहेवि सय-वारउ कह वि खमावि रामु भडारउ ॥ १ पुणु पुणु वन्दण-हत्ति करेप्पिणु सोमित्तिहे गुण-गण सुभरेप्पिणु ॥२ पडिवोहणहिँ 'पयट्टु सयम्पहु लङ्कुवि पढम-णरउ रयणप्पहु ॥ ३ पुणु अइकवि पुढवि-सक्करपहु सम्पाइउ खणेण वालुयपहु ॥४
तेत्थु को वि कणु जिह कण्डिजइ कों वि पुणु रुक्खु जेव खण्डिजइ ॥ ५ 10 को वि सरसुच्छ जेम पीलिजइ तिलु तिलु करवत्तेहिँ कप्पिज्जइ ॥६
को विवलि जिह दस-दिसु घल्लिजइ कों वि मयगल-दन्ते हिँ पेल्लिजइ ॥ ७ कों वि पिट्टिजइ वज्झइ मुच्चइ कों वि लो हिजइ रुज्झइ लुञ्चइ ॥ ८ को वि पुणु डज्झइ रज्झइ सिज्झइ कों वि णरु छिजइ छजइ विज्झइ ॥९ कों वि मारिजइ खजइ पिजइ कों वि चूरिजइ पुणु मूरिजई ॥ १० , को वि पउलिज्जइ को वलि दिजइ को वि दलिज्जइ को वि मलिज्जई ॥११ को वि कणइ कन्दइ धाहावइ को वि पुव्व-रिउ णिऍवि पधावइ ॥ १२
॥ घत्ता॥ तहिँ 'सम्वुके हम्मन्तु घोरारुण-णयणु । गय-पाणि-सवन्त-सरीरु दीसइ दहवयणु ॥ १३
[९] पुणु सम्वुकुमारहों समउ तेण वोल्लिजइ झत्ति सुराहिवेण ॥१ 'रे रे खल-भावण असुर पाव आढत्तु काइँ ऍउ दुट्ठ-भाव ॥२
8. 1 P °उं. 2 Ps कहि. 2 P marginally reads the following passage after this : कहि सो लक्खणु जो चिरु देवरु । जेण सचक्के मारिउ दससिरु ॥ पभणइ वलु अइ भोयासत्तउ । वालुप्पहणरयहं सो पत्तउ ॥ तं णिसुणेविणु हियए धरेप्पिणु। 3 PS A °दंति. 4 } S को°. 5 P S सु. 6 After this P S read : को वि हम्मइ पुणु तेह कढिज्जइ । को वि ताविजइ को वि ताडिजइ । को वि चूरिजइ को वि पाडिजइ । '7 After this P s read को वि धरिजइ सूले भरिजइ । को वि णरु केण वि हक्कारिजइ ॥ को वि मोडिज्जइ को वि तोडिज्जइ । को वि पीसिजइ को वि छोडिजइ॥ 8 PS A °णु.
८] १ प्रवृत्तः सीतेन्द्रः. २ 'संवुकें दीसइ' इति सम्बधः । सम्बुकुमारेण सुरकुमारभतेन नरकं गत्वा हन्यमानो रामणनारको दृश्यत इत्यर्थः (?). .
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