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________________ १० ३, ५-१२, २, १-९, ३, १-३] उत्तरकण्डं-णवासीमो संधि [२७७ खवय सेढि आरूढहाँ आयहाँ तिह करेमि इह झाण-सहायहीं ॥५ जिह मणु टलइ ण होइ पहाण, धवलुजल-वर-केवल-णाणउँ ॥६ जिह वइमाणिउ जायइ सुरवर मित्त मणि? मज्झ 'मणि-गण-धरु ॥७ पुणु ते सहुँ भमेवि अहिणन्देनि सव्वइँ जिण-भवणइँ जगें वन्देवि ॥ ८ पञ्च वि मन्दर णवेवि 'सुरोहएँ जामि दीवु णन्दीसरु सोहएँ ॥ ९ पुत्तु सुमित्तहे णरयहो.होत्तउ आणेवि लद्ध-वोहि-सम्मत्तउ ॥ १० पुणु तइलोक-चक-जस-भामें. जम्पमि सुह-दुक्खइँ सहुँ रामें' ॥११ ॥ घत्ता ॥ चिन्तन्तु एम सो देउ आउ,णहन्तरण । तं कोडि-सिला यलु पत्तु "णिविसब्भन्तरेण ॥ १२ [२] पुणु चउ-पासिङ तहिँ विणु खेवें कउ उज्जाणु सयम्पह-देवें ॥१ जं णवल्ल-पल्लव-सोहिल्लउ जं अल्लल्ल-फुल्ल-रिद्धिल्लउ ॥२ जं वहु-कोमल-कोम्पल-फल-दल जं कल-कोइल-कुल-किय-कलयलु ॥ ३ जं सीयल-मलयाणिल-चालिउ जं चल-महुलिह-वलय-वमालिउ ॥ ४ ॥ जं साहार-णियर-मञ्जरियउ जं कुसुम-रय-पुञ्ज-पिञ्जरियउ ॥५ जं 'सुय-सयइँ(?)सु-किंसुअ-भरियउ जं वहुविह-विहङ्ग-संचरियउ ॥ ६ जं दस-दिसि-वह-पसरिय-परिमलु तरु-पन्भारन्धारिय-महियलु ॥ ७ जं सुरपुर-उजाण-समाण मन्दर-णन्दण-वण-अणुमाणउँ ॥८ ॥ घत्ता ॥ तहिँ वियणे महावणे रम्म मन्थरु णा गउ । सुरु 'जाणइ-रूवु धरेवि रामहों पासु गउ ॥ ९ [३] पुणु णियडन्तरें लीलऍ जाऍवि एवं पवोल्लइ अग्गएँ थाऍवि ॥१ 'विरह-वसङ्गइयऍ सुमरन्तिऍ सग्ग-पएस असेसु भमन्तिएँ ॥२ णिय-पुण्णेहिँ गरुएहिं मणिट्ठउ वहु-कालहों केम वि तुहुँ दिट्ठउ ॥ ३ 4 P A °उं. •5 P °गण° corrected as °गुण , A °गणहर. 6 A °उं. 7A भातहो. 8 A सुहुं. 9 A रामहो. 10 P s णिव.. 2. 1 P °अउं. 2 P A उ. 3. 1 Ps °गए अइ. [१] १ (P.'s reading) बहुगुणरत्नधारकः, बहुरत्नधारकः. २ सुराणामोघो यस्यां शोभायाम्. [२] १. शुकशतरुतशब्दः. २'" गज इव. ३ सीसारूपं कृत्वा, तात.' 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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