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२७६] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क० १३,३-१०; १, ३-४ तव-चरणु चरइ अइ-घोरु वीरु सहसउणु पवड्डइ हियएँ धीरु ॥३ गय-मासाहारिउ मयवइ व्व सव्वोवरि, सीयल उंडुवइ व्व ॥४ रस-रहिउ हीण-णट्टावउ व्व पर-भवण-णिवासिट पैण्णउ व्व ॥ ५ "मोक्खहाँ अइ-उज्जउ 'लोद्धउ व्व पयलिय-मय-विन्दु महागउ व्व ॥ ६ वहु-दिणेहि भमेवि महियलु असेसु सम्पाइउ कोडि-सिला-पएसु ॥ ७ मुणिवरहँ कोडि जहिँ आसि सिद्ध जा तित्थ-भूमि तिहुअणे पसिद्ध ॥८ उद्धरिय-भुऍहिँ जा लक्खणेण तहें देवि ति-भामरि तक्खणेण ॥ ९
॥ धत्ता ॥ उर्वरि चडेवि पलम्विय-वाहउणं तरुवर गिरि-सिहरे स-साहउँ । सुग्गीवाइ-मुणिन्द-गणेसरु थिउ झायन्तु स य म्भु-जिणेसरु ॥१०
इय पोमचरिय-सेसे सयम्भुएवस्स कह वि उंबरिए । तिहुअण-सयम्भु-रइए राहव-णिक्खमण-पवमिणं ॥ वन्दइ-आसिय-कइराय-चक्कवइ-लहु-अङ्गजाय-वजरिए । रामायणस्स सेसे अट्ठासीमो इमो सग्गो ।
[८९, णवासीमो संधि] वायरण-दढ-क्खन्धो आगम-अङ्गो पमाण-वियड-पओ। तिहुअण-सयम्भु-धवलो जिण-तित्थे वहउ कव्व-भरं ॥
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तो अवहिए जाणेवि तेत्थु राहउ मुणि थियउ । अचुय-सग्गहों सीएन्दु तक्खणे आइयउ ॥ ध्रुवकं ॥
[१] णियय-भवन्तराई सुमरेप्पिणु जिण-धम्मों वि पहाउ मुणेप्पिणु ॥१ चिन्तइ तक्खणे अञ्चुअ-सुरवइ 'ऍहु सो मइँ मणे जाणिउ रहुवइ ॥२ - जो अणुअत्तणे कन्तु महारउ जसु चक्कवइ भाइ लहुआरउ ॥ ३ सो गउ णरयहाँ णेहें छइयंउ एहु वि तहों विओऍ पब्वइयउ ॥४
3 P A °ह, s°हो. 4 P उअरे, उअरि. 5 P °3. Puspika : 1 sĀ °वण.
1. 1 P S A °उ. 2 P छइड, 8 छायउ, A खइयउ. 3 F S A पव्वइउ.
[१३] १ रिषिभिः सह (?). २ चंद्र इव. ३ सर्प इव. ४ वेज्झकस्य (?). ५ लुब्धकबाण इव.
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