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१५, ७-१०,८, १-९; ९, १-३]. उत्तरकण्डं-अट्रासीमो संधि [२७३ लब्भइ बहु-वन्धव सण-सत्थु लब्भइ 'अणाय-परिमाणु अत्थु ॥ ३ लब्भन्ति हत्थि रह तुरय.पवर अइ-दुल्लहु वोहि-णिहाणु णवर' ॥४ परियाणेवि वलु पडिवुद्ध एव णिय-रिद्धि वे वि दरिसन्ति देव ॥ ५ सुरवहु-सङ्गीउ सुअन्ध-पवणुः जम्पाण-विमाणेहिँ छण्णु गयणु ॥ ६ 'अहो रहुवइ किं गय-दिण-सुहेण' तेण वि पवुत्तु वियसिय-मुहेण ॥ ७ । 'चिरु पुण्ण-विहूणों मझु एत्थु मणे मूढों णि विसु वि सोक्खु केत्थु ॥ ८ इय मणुय-जम्में पर कुसलु ताहँ जिण-सासणे अविचल भत्ति जाहँ ॥९
॥घत्ता॥ अण्णु वि णिसुणहों कहमि विसेसें. ताहँ कुसलु ते मुक्त किलेसें । चत्त परिग्गह वयहिं अलविय जे जिण-पाय-मूलें दिक्खकिय ॥१०॥
[८] पुणरवि एव वुत्तु 'काकुत्थे के तुम्हे अक्खहाँ परमत्थें ॥ १ के कजें इय रिद्धि पगासिय रिवु-साहणहों पयत्ति विणासिय' ॥२ सरहसु एकु पजम्पिउ सुरवरु 'किं सामिय वीसरियउ णहयरु ॥ ३ तुज्झु पइट्ठहों चिरु दण्डय-वणे जो अल्लीणु महारिसि-दसणे ॥४ तुहं घरिणिऍ जो लालिउ तालिउ णियय-सरीरुब्भवु जिह पालिउ ॥ ५ सीयाहरणे समुडेवि गयणहों जो अन्भिडिउ आसि दहवयणहाँ॥६ जासु मरन्तहाँ सुह वड्डारिय पइँ णवकार पञ्च उच्चारिय ॥ ७ तुज्झु पसाएं रिद्धि-पसण्णउँ सुरु माहेन्द-सग्गे उप्पण्णंउ ॥ ८
॥ घत्ता ॥ जो अञ्चन्त आसि उवयारिउ भव-सायरें पडन्तु उद्धारिउ । हउँ सो देउँ जडाइ महाइउ 'पडिउवयारु करेवऍ आइउ' ॥९
[९] तो ताव कियन्त-देउ चवइ 'किं मइँ वीसरिउ णराहिवइ ॥१ जो सेणावइ तउ होन्तु चिरु लल्लक्क-महारण-सऍहिँ थिरु ॥२ जो पेसिउ पइँ सहुँ भायरहों सत्तुहणहों समरें कियायरहों ॥ ३ . 7. 1.A अणेय'. 2 PS णिव'.
8. 1 P तुम्हेइं, ते तुम्हेइ. 2 PS तुह, A दुह. 3 A उं. 4 P उप्पसण्णउं, A उप्फ ण्ण उं. 5 P A देव.
[७] १ अज्ञातप्रमाणम्. [८] १रामेण. २ वपुत्र इव. ३ उपकारः कृतो यस्य मम.
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