________________
२७२] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क० ५, ६-१०,६,१-१२, ७, १-२ णेह-वसेण विवज्जिय-रजें ऍहु णर-देहु वहहि किं कजें ॥६ तेण चविउ 'मइँ किर किं पुच्छहि अप्पाणई किर काइँ ण पेच्छहि ॥ ७ जिह हउँ तेम तुहु मि मण मूढउ अच्छहि खन्धे कलेवर-वृंढउ ॥ ८ 'पइँ पेक्खेप्पिणु महु अणुरूवउ मण परिअडिउ णेहु गरूअउ ॥९
॥ घत्ता ॥ भो भो मइँ-पमुहहुँ चिरु जायहँ तुहुँ राण सव्वहु मि पिसायहुँ । आउ दुइ वि मह-मोह-ब्भन्ता हिण्डहुँ गहिलउ लोउ करन्ता'॥१०
इय वयणेहिँ हलि-वले-पउम-णामु अइलजिउ सिढिलिय-मोहु रामु ॥१ " सहसा हुउ वियसिय-कमल-णयणु परिचिन्तहुँ लग्गु जिणिन्द-वयणु ॥ २
जं दुक्किय-कम्मइँ खयहाँ णेइ जं अविचल-सासय-सुहइँ देइ ॥३ 'हउँ णेह-वसङ्गउ पेक्खु केव जाणन्तो वि अच्छमि मुक्नु जेम ॥४ धण्णउ तिहुअणे अणरण्ण-राउ जो छिन्देवि मोहु मुणिन्दु जाउ ॥ ५
धण्णउ दसरहु चिरु जासु झत्ति कञ्चइ पेक्खेप्पिणु हुअ विरत्ति ॥ ६ is धण्णर्ड भरहु वि 0 चत्तु रज्जु वोहण वि किउ परलोय-कन्जु ॥७
धण्णउँ सेणाणि कियन्तवत्तु जे मुंणेवि अणागय(?) लइउ तत्तु ॥ ८ धण्णी सीय विहय-कुगइ-पन्थं ण वि दिट्ट जाएँ एही अवत्थ"॥९ धण्णउँ हणुवन्तु वि जो गरूवे ण वि णिवडिउँ इय-मोइन्ध-कूवें ॥ १० धण्णा लवणकुस हरि-सुआ वि जे दिक्खालङ्किय णव-जुवा वि॥ ११
॥घत्ता ।। हउँ घई पुणु पाँएण 'गएण वि अण्णु वि लच्छीहरण मएण वि । करमि काइँ वि अप्प-हियत्तणु कहाँ णिय-कजे ण होइ वढंत्तणु'॥१२
20
पुणु पुणु रहुकुल-गयणयल-चन्दु परिचिन्तइ हियवएँ रामचन्दु ॥१ 25 'लन्भन्ति कलत्तइँ मणहराइँ छत्तइँ लब्भन्ति स-चामराइँ ॥२ । 2 P S °3. 3 A °छूढउ. 4 P°उं. 5 P हिंडह, 5 हिंड, A हिंडह. 6 PS गहिल्लउ.
C. 1 PS °लु. 2 P °मु. 3 PS °लु. 4 PS छिंदिवि, A छंडिवि. P उं. 6A गोदु', PS वोदु. 7 PS वि पुणु कियंतु. 8 P S A मुणि'. 9 Ps °थु. 10 P s °टु. 11 P8 °थु. 12 A पडिउ. 138 पावेण. 14 P वड्ड, वड.
२ त्वया अवलोक्य मह्यं अनुरूपो जातः. (१). ३ द्वौ अहं त्वं महामो भ्रान्ता भ्रमतौ प्रथिलौ भवतः.
[६] १ यौवनेन, I' तारुण्येन. २ अनागतम्. ३ इदानोम्. ४ यौवनावस्थया, ' युवावस्थायाम्. ५ मुग्धत्वम्.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org