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क०४, १-१०,५,१-५]
उत्तरकण्डं-अट्ठासीमो संधि [२७१ णिम्मिंउ सिञ्चिजमाणु सलिलेण सुक्क-रुक्खो सम्पसे वसन्त-मासें विरहि व्व सुटु सुक्खो ॥२ 'ओलग्गिउ कु-पहु णाइँ णिप्फलु अदिण्ण-छाओ किविणु व सइँ .पत्त-फुल्ल-परिचत्तु समल-काओ ॥ ३ वसह-कलेवर-जुअम्मि हलु थवेवि ण-किय-खेवो वाहइ 'पक्खिरइ वीउ सिलवट्टे वीय-देवो ॥४ रोवइ पाहाणे. कमल-उप्पल-णिहाउ पवरो पविरोलइ मन्धणीऍ पाणिउ कियन्त-अमरो ॥ ५ पुणु पीलइ वालुआएँ घाणउँ जडाइ-णामो अत्थ-विरुद्धाइँ ताइँ अवरइ मि णिऍवि रामो ॥ ६ पभणइ 'भो भो अयाण तुहुँ मूढ णिय-मणेणं किं सलिलहाँ करहि हाणि जर-रुक्ख-सिञ्चणेणं ॥ ७ मायासहि पियर मडय-जुअले य वीय-सीरे ण वि लोणिउँ होइ परिमन्थिए वि णीरे (?)॥ ८ वालुअ-परिपीलणेण तेल्लोवलद्धि कत्तो इच्छिय-फलु किं वि णत्थि आयासु पर महन्तो' ॥९
॥ घत्ता ॥ तो वुच्चइ कियन्त-गिव्वाणे 'तुहु मि एउ परिवजिउ पाणें । - वहहि सरीरु जेण अविसिट्ठउ कहें फलु काइँ ऐत्थु पइँ दिट्टउ' ॥ १०
[५] तं णिसुणेवि वयणु णीसामें हरि अवरुण्डेंवि वुच्चइ रामें ॥१ 'किं सिरि-णिलउ कुमार दुगुच्छहि जण मुणहि तो 'सेरउ अच्छहि ॥ २ केत्तिउ चवहि अणि? अमङ्गल दोमु पढुक्कई तउ पर केवलु' ॥ ३ जम्पइ जाव वयणु इउ हलहरु. ताव लएविणु सुहड-कलेवरु ॥४ आउ जडाइ वहन्तउ खन्धे वुत्तु वलेण भाइ-सोअन्धे ।। ५ 2 A दुक्खो. 3 PS.पहाणे. 4 P A °उं. 5 Ps करें. 6 P °क्खें, s °क्खे. 7 PS णासहि. 8 P°उं. 9*P एउ, s यउ. . 5. 1,P S पढुकं.
[४] १ वियोनी इव उत्कृष्टशुष्कः. २ सेवितो कुश्चिन् ( ? ) नृपतिः निष्फलो भवति. ३ वृषभौ पुगे योक्त्रितौ. ४ विस्तरति. ५ पाषाणे कमलसमूहूं रोपति. ६ कृतान्तवक्त्रवरदेवः, ७ ' मा वेदं कुरुष्व. ८ बीजहलो. ९ खेदा. [५] १ मौनेन.
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