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________________ हॅ वजमालि-रयणक्ख- पमुह 'मरु छिन्दहुँ अज्जु कुमार-सीसु "जं लड्ड खग्गु चिरु सूरहासु जं खर- दूसण- तिसरयहँ मरणु 10 २७०] सयम्भुकिङ पउमचरिउ परियार्णेवि रहुवइ सोय - गहिउ सामरिस- खयर - णरवर- णिउत्त 25 तो सुर्णेवि आय 'रिवु राहवेण रहें चडेंवि थविउ उच्छङ्गे' भाइ एत्थन्तरें जे माहिन्द पत्त ते तख आसण-कम्प होवि 15 गुण सुमरेंवि सामि भत्ति-वन्त "विउरुव्विड सुरवर- वलु अणन्तु तं पेक्खवि हरि-वल रिवु पणट्ठ वोल रयणक्खु स वजमालि अम्हहिं सयल वि गलियाहिमाण किह गम्प सुह- दंसणासु 20 लङ्क जं वहु-ठाहिँ अहँ अणुदिणु तं सलु विमेले विणिय- बुद्धिऍ [ क० २,३ - ९,३, १-११; ४, १ णीसेस सेण-वावार - रहिउ ॥ ३ आइय वहु इन्दइ- सुन्द-पुत ॥ ४ वलय कियन्त- धणु- भीम-पमुह ॥ ५ बहु- कालहों संभाइउ हवीसु ॥ ६ जं सम्बुकुमारहों किड विणासु ॥ ७ किउ अक्खय-रावण-पाण•हरणु ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ एम भवि इन्दिय दुब्भेयहाँ भव-विरत णर-णियरालङ्किय दिण्णु अणन्तरु वइरु महा-रिणु । फेडहुँ अज्जु सब्बुं सहुँ विद्धिऍ ॥ ९ [३] आयामि वज्जावत्तु तेण ॥ १ जोइय पडिवक्ख जमेण जाइँ ॥ ३ सुर जाय जडाइ-कियन्तवत्त ॥ ३ अवहिऍ परियार्णेवि आय वे वि ॥ ४ सम्पाइय उज्झाउरि तुरन्त ॥ ५ 'मरु वलहों वलहों ढुक्कहों' भणन्तु ॥ ६ लङ्घन्ति दिसउ णं हरिण तट्ठ ॥ ७ 'दुहु को वण पावइ किय-दुवालि ॥ ८ णिल्लज दुट्ठ दुज्जण अयाण ॥ ९ पेक्सहुँ वय विही सणासु' ॥ १० Jain Education International ॥ घत्ता ॥ गम्पिणु पासें मुणिहें रइवेयहों । ते सुन्दिन्दइ- सुय दिक्खयि ॥ ११ [ ४ ] . तो रि-भऍ विगयऍ सयलें' गुण- रयण- सायरेणं सेणाणिय-सुरेण राम-वोहण कियायरेणं ॥ १ 2 Ps° व्व. 3 PS सुद्धि. 3. 1 P°उं. 2 P उच्चंगे, s उच्चगे. 3 r सासण°, PSAT कंप. 4PSA क्ख. 4. 1P सय. [२] १ लक्ष्मीधरं ४ प्रमुखेति नामेदम्. ३ T खरपुत्रः. [३] १ शत्रवः, २ चतुर्थस्वर्गे, ३ T आसनकंपयुक्तः ४ विकुर्वणा कृतः ( ? ) For Private & Personal Use Only मुक्त्वाऽन्यत्र संपूर्ण - सर्व्व- सैन्यादिव्यापाररहित इत्यर्थः, २ नियुक्तः. www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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