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२६८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क०१७, १-९,१८,१-१०
[१७] तं णिऍवि सुमित्ता-तणउ तेहिं धाहाविउ वर-विज्जाहरेहिँ ॥१ 'हा हा कालहों णिहाण-पाल अइ-दूरीहूअउ सामिसाल ॥२
हा हा कहे पेसणु किं पि णाह हा अज्जु जाय अम्हइँ अणाह ॥३ 5 हा हा जण-मण-जणियाणुराय कहें को पेसेसइ वहु-पसाय ॥ ४
हा हा सामिय जय-सिरि-णिवास पइँ विणु ण वि राहव जीवियास ॥५ हा हा सामिय सव्वोवयारि हा हा 'मयरहरावत्त-धारि ॥६ हा सामिय तुह दय-रिणु इमेण परिसुज्झइ ण वि एके' भवेण ॥७ तें कजें किं ऍउ जुत्तु तुज्झु .जे मुऍवि जाहि ण कहन्तु गुज्झु॥
॥घत्ता ॥ तें कलुणारावें णरवरहँ दस-दिसि कण्णउँ सुरवर वि । वणसइउ णइउ मह-जलहि गिरि रोवाविय वर विसहर वि ॥९
[१८] अप्पउ सन्थविउ विहीसणेण पुणु पणिउ राहवचन्दु तेण ॥१ 5 'परिसेसहि देव महन्तु सोउ कासु ण भुवणन्तर हुउ विओउ ॥२
ण वि एकहाँ एयहाँ 'अन्तकरणु सव्वहाँ वि जणहाँ जर-जम्म-मरणु ॥३ जीवहाँ भव-गहणे ण का वि भन्ति चञ्चलइँ सरीरइँ होन्ति जन्ति ॥४ उप्पत्ति जेव तिह धुवु विणासु किं रोवहि कारणे लक्खणासु ॥५ कइड वि अम्हेहिँ तुम्हेहिँ एव पहु गमणु करेवउ एण जेव ॥ ६ 20 जइ जीव-रासि आवइ ण जाइ तो मेइणि-मण्डले केत्थु माइ॥ ७ जइ मरणु णाहिँ भो रामयन्द तो कहिँ गय कुलयर जिणवरिन्द ॥८ कहिँ भरह-पमुह चक्कवइ पवर कहिँ रुद्द-कण्ह-वलएव अवर ॥ ९
॥घत्ता ॥ एउ जाणेवि सयलागम-कुसल वयणु महारउ मण धरहि । झायहि स य म्भु तइलोक-गुरु दुहु दु-कलत्तु व परिहरहि ॥१०
इय पोमचरिय-सेसे तिहुअण-सयम्भु-रइए
सयम्भुएवस्स कह वि उव्वरिए । हरि-मरणं णाम पव्वमिणं ॥
2 P A °उं.
3 P°हरेहि, S हरेहि.
17. 1 A एक्केण. - 18. 1 P °हं.
[१७] १ समुद्रावर्तधनुष्यधारकः. [१८] १ यमः.
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