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क० १४, ५-९; १५, १-८, १६, १-८] उत्तरकण्डं-सत्तासीमो संधि [२६७ हा काइँ करमि संचरमि केत्थु ण वि तं पएसु सुह लहमि जेत्थु ॥५ णिड्डहइ जेम भायर विओड़ तिह ण वि विसु विसमु ण पिसुणु लोउ॥६ ण वि गिम्ह-याले खर-दिणयरो वि ण वि पन्जालिउ वइसाणरो वि ॥ ७ हा उज्झाउरि-पायारु खसिउ इक्खुक्क-वंस-मयरहरु सुसिउ' ॥८
॥ पत्ता ॥ : पुणु आलिङ्गइ चुम्बइ पुसइ अङ्के थवेप्पिणु पुणु रुवइ । जीविऍग वि मुक्कउ महुमहणु रामु सणेहें ण वि मुबइ ॥९
. . [१५] लक्खण-गुण-गण मणे सुमरन्तें दसरह जेट्ठ-सुएण रुवन्ते ॥ १ रुण्णु अउज्झा-जणेण असेसें अवराइऍ सुप्पहऍ विसेसें ॥२ रुण्णु सल्लसुन्दरिऍ विसालऍ रुण्णु विसल्लएँ तिह गुणमालऍ ॥ ३ रुण्णु रयणचूल' वणमालएँ तिह कल्लाणमाल-णामालऍ ॥ ४ रुण्णु सच्चसिरि-जयसिरि-सोमेंहिँ दहिमुह-सुअ-गुणवइ-जियपोमेहि ॥ ५ रुण्णु कमलोयण-ससिमुहियहिँ ससिवद्धण-सीहोयर-दुहियहिँ ॥६ रुण्णु अणेयहिं वन्धव-सयहिँ खणे खणे विहिहें दिण्ण-दुव्वयणहिँ ॥ ७ 15
॥ घत्ता ॥ जसु सोएं मुक्कल मुक्क-सर सइँ जय-सिरि लच्छि वि रुवइ । तहें उज्झाउरिहें कमागऍहिँ को वि ण गरुअ धाह मुअइ॥८
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तो दस-दिसु पसरिय एह वत्त सहसा विजाहरवरह पत्त ॥१ सयल वि स-कलत्त स-पुत्त आय सुग्गीव-विहीसण-सीहणाय ॥२ ससिवद्धण-तार-तरङ्ग-जणय स-विराहिय गवय-गवक्ख-कणय ॥३ कोलाहल-इन्द-महिन्द-कुन्द दहिमुह-सुसेण-जम्बव-समुद ॥४ ससिकर-णल-णील-पसण्णकित्ति मय-सङ्ख-रम्भ-दिवसयर-जोत्ति ॥ ५ सयल वि अंसुअ-जल-भरिय-णयण तुहिणाहय-कमल-विवण्ण-णयण ॥ ६ वलएवहाँ चलणहिँ पडिय केवं तइलोक-गुरुहें गिव्वाण जेव॑ ॥ ७
॥घत्ता ॥ अवलोइउ पुणु असहन्तऍहिँ चक्काहिउ सम्पत्तु खउ । विगय-प्पहु दर-ओणल्ल-सिरु णं किउ केण वि लेप्पमउ ॥ ८
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3Pमुवइ. ___ 15, 1 Ps दितु.
16. 1 A.विजाहर आय. 2 A गय. 3 PS अंतुजल'.
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