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२६६ ] सयम्भुकिउ पउमचरिउ पइँ विणु को महु पेसणु सारइ पइँ विणु वालिखिल को धीरइ पइँ विणु को भञ्ज धरणीधरु
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सत्तिउ अरिदमण-राहिवहाँ पइँ विणु लक्खण खेमञ्जलिहें
हा लक्खण पइँ विणु गुणहरा हँ पइँ' विणु अ-किलेसें भुवणें कासु 10 पइँ विणु को हेलऍ गरुअ-धीरु पइँ विणु संदरिसिय' वहु-वियारु पइँ विणु को जीविउ हरइ ताहँ पइँ विणु को धीरइ पमय-सत्थु पइँ विणु लङ्काणयरिहें समीवें पइँ विणु को इन्दर धरइ भाइ पइँ विणु को आवइ किय-विसल पइँ विणु उप्पज्जइ कहाँ रहङ्ग पइँ विणु कियन्तु को रावणासु
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हा तवों विगय महु पुत्त वे वि हा मुऍ मच्छरु लहु पालिऍल
25 हा किं महु उवरि' पण हु इहें चकें जें हउ वइरि-चक्कु
उवसग्गु हरइ को गुणिवराहं ॥ १ करें लग्गइ असिवरु सूरहासु ॥ २ विणिवायइ सम्वुकुमारु वीरु || ३ को परियाणइ चन्दणहि चारु ॥ ४ तीहि मि तिसिरय-खर- दूसणाहँ ॥ ५ को कोडि - सिलुद्धरणहुँ समत्थु ॥ ६ को जिus हंसरह हंस-दीवें ॥ ७ को रावण - सत्तिऍ समुहु थाइ ॥ ८ दिवसयरें अणुट्ठन्तऍ विसल ॥ ९ को दरिसइ बहुरुविण भङ्ग ॥ १० को सिय- दायारु विही सणासु ॥ ११
॥ घत्ता ॥
पइँ विणुमणि महु भाइगर को मेलावइ पिय-घरिणि । पालेसइ णिरु णिरुवद्दविय
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॥ घत्ता ॥
पञ्च पडिच्छेवि स समरें । कहाँ लग्गइ जियपउभ करें ॥ ९ [१३]
[क० १२, ६- ९, १३, १–१२, १४, १-४
वज्जयण्णु णरवरु साहारइ ॥ ६ को तं रुदभुति विणिवारइ ॥ ७ धरइ अणन्तवीरु को दुद्धरु ॥ ८
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को ति खण्ड-मण्डिय धरणि ॥ १२
[ २४ ]
लच्छीहर 'गम्पिणु आउ लेवि ॥ १ वह अणगार- मुणिन्द वेल || २ हा जणु संथवहि रुवन्तु एहु ॥ ३ सो विसहहि के कियन्त- चक्कु ॥ ४
13. 1PSAइ. 14.1Ps.
[१३] १ चरित्रम् २ सुग्रीवादिकम् ३ अन्यस्य कस्यागच्छति. विसल्ल्या.
५ चक्रम्.
[१४] १ गत्वा. २ इला=पृथ्वी.
2Ps लीलड्. 3 A दरिसिय कोहु. 2Ps य.
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४ कृतो विसल्लो यया
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