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________________ क० ६, १-९; ७, १-८; ८, १-२ ] [६] आयण्णेंवि इय वयणइँ चवन्तु जयकारेंवि वासवु चारु-वेस तर्हि वर 'स-विभम विष्णि देव 'वलु मुय सुणेवि सणेहवन्तु किह रूअइ पजम्पइ काइँ वयंणु मुहु सोएं केउ होइ तासु एउ वयणु पजम्पेंवि श्यणचूलुं अणु वि जाणेंवि असणं- मित्तु ॥ १ गय यि - णिय- णिलयहँ सुर असेस ॥ २ पचलिय लक्खणहों विणासु जेव ॥ ३ पेक्खहुँ सो काइँ करइ अणन्तु ॥ ४ आरूसइ कहाँ कहिँ कुणइ गमणु ॥ ५ केरिस दुक्खु अन्तेउरासु' ॥ ६ वि णामें अमियचूलु ॥ ७ to विणि वि कय- णिच्छय गय तुरन्त णिविसेण अउज्झा-णयरि पत्त ॥ ८ जं हलहर - मरण- सह णिसुउ 'हा काइँ जाउ फुडु राहवहाँ' सहुँ वायऍ जीविउ णिग्गयड वर - जयरुवखम्भासियउ अ-मिलिय- लोयणु थड्ड-तणु तं पेक्खवि सुरवर वे वि जण अइलज्जिय पच्छाताव- कय ॥ घन्ता ॥ मायाम वलएवह भवणें देवहिं कलणु सर्दु गरुड | कि 'जुवइ-वि-धाहा - गहिरु 'हा हा राहवचन्दु मुउ' ॥ ९ तो पास ढुक्क आउल-मणाहँ कवि पणइणि पणएं भणइ एव सुरवर - मायऍ विउरुव्वियउ आढत्तु पणय-कुवियइँ करेंवि 6. 1P आसणु मुवंतु, S आसण्णु. 5 PS°g. 7. 1P एव, S-येव. 2s सं. · उत्तरकण्डं सत्तासीमो संधि [२६३ [७] १ भुवर्णः २ स्त्रीभिः . Jain Education International [७] तं भणइ विसण्णु सुमित्ति-सुख ॥ १ लहु अ चवन्त एव तहों ॥ २ हरि देहों णं रूसेंवि गयउ ॥ ३ सीहास वित्थण्णऍ थियउ ॥ ४ लेप्पड णाइँ थिउ महुमहणु ॥ ५ अप्पर णिन्दन्ति विसण्ण-मण ॥ ६ सोहम्म - सग्गु सहसत्ति गय ॥ ७ ॥ घत्ता ॥ 'परियाणवि हरि - गेहि णिहिं । सव्वेंहिं सुड्डु सोहिणिहिं ॥ ८ 3 Ps विच्छि. 4 A पच्छत्ताव. 5 PT मे° [६] १ (P's reading ) अन्यदपि आसनं मुञ्चन्तं वासवं ज्ञात्वा. •३ स्त्रीसमूहैः. [4] सत्तरह सहस - वरङ्गणाहँ ॥ १ 'रोसावि कवणें अक्खु देव ॥ २ 2 PSA हि. 3P सद्द. 4Ps किउ गरुभउ. For Private & Personal Use Only २ सविस्मय. 5 to 15 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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