SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२] सयम्भुकिङ पउमचरिउ अह देवो वि होवि पडिवर णरु अों देवों कइयहँ मणुअत्तर्णे अट्ठ-दु-कम्मार हणेसहुँ एक्के सुरेण वुत्तु तो सुरवइ • मणुअत्तर्णे पुणु सव्वहँ मुज्झइ अहवइ जइ ण वि मणें परिअच्छहि चवेंवि 'म्ह णामों सुर-लोयहों 5 10 20 विहसेवि वुत्तु 'सन्दर्णेण संसारे सह- णिवन्धु दिदु लच्छीहरु कसणुज्जल- देहउ एक्कु विणिविसु विओउ ण इच्छइ एत्ति जाणमि हाँ अहाँ देवहाँ Is ण वि जीवइ णिरुत्तु दामोयरु किह वीसर विविह उवयारा कह वीसरजं अउज्झ मुएवडे किह वीसरज रउछु महारण कि बीसर समरे पहरेवड "किह बीसरउ स-रोसु भिडेवउ ॥ घत्ता ॥ [क० ४, ६ - १३, ५, १-१० रुवि होवि पुणु पडिव सुरवरु ॥ ६ वोहि लहेसहुँ, जिणवर- सासणें ॥ ७ अविचल सिद्धाउ पावेसहुँ' ॥ ८ 'सग्गे वसन्तहँ अम्हहँ इय मइ ॥ ९ कोह-लोह - मय-माहिँ रुज्झइ ॥ १० तो किं पउमणाहु ण नियच्छहि ॥ ११ किह आसत्तउ मणुअ-विहोयहों' ॥ १२ [५] रामो र परिवडिय - हउ ॥ १ उवगरेहुँ पाणेहिं विवञ्छइ ॥ २ मरणों णामेण जि वलएवहों ॥ ३ रामु अ तें म सहोयरु ॥ ४ जे चिन्तविय - मणोरह-गारा ॥ ५ समउ सयले वण-वासें भमेव ॥ ६ 'स-तिसिरं-खर- दूसण-सङ्घारणु ॥ ७ इन्दs विरहु करेवि धरेव ॥ ८ लङ्केसर - सिर- कमल खुडेवर ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ अवर वि उवयार जणद्दणहों किह रहुवइ मर्णे वीसरइ । तें अच्छइ पडिउवयार-मइ हवसंग किं करइ' ॥ १० [४] १ पञ्चमवर्गात् २ इन्द्रेण. [५] १ त्रिसरः. Jain Education International 'जीव - निहाय - णिरुन्धणहँ । मझें असेसहँ वन्धहँ ॥ १३ 3PS हो. 4 Ps मोह° 5Ps°माणें. 6 P सकं, s स. 7Ps हु. 5. 1Ps वि पाणेहिं. 24°उ. 3PSतं. 4 p. 5 Ps°ल. 6 A ससिमिर. 7 This pāda is wanting in P. 8 This pāda is wanting in s. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy