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क० २,४–१०, ३, १-८; ४, १–५
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विविहाहरण- फुरन्त-संरीरङ मह- रिद्धिऍ सत्तिएँ संम्पुण्पाउ लोयवाल- मुहँ सुह-पवरहँ 'जासु पसाएं ऍड इन्दत्तणु जें संसार - घोर - रिवु एक्के जो भव - सायर- दुइँ शिवारइ
उप्पण्णहा जसु मन्दर - सिहरें तं पण 'सइँ सव्वायरेंण
जो सरायर हिम मुएप्पिणु जासु णामु सिंवु सम्भु जिणेसरु जिणु जिणिन्दु काले अरु सङ्करु विहु सयम्भु सम्मु सयम्पहु सूरि णाण- लोयणु तिहुयण-गुरु मुहु सोक्खु रिवेक्खु परम्परु अ-गुरुं अ-लहुड णिरञ्जणु णिक्कलु
जीवु अणाइ-हिणु भव- सायरें केम' वि मणुयय-जम्मे उप्पज्जइ. मिच्छातवेंण जाउ हीणामरु मह- रिद्धियों वि सुरहों सु-बल्लह दुक्खु दुक्खु सो धम्महों लग्गइ
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2. 1• A गरुय वीरु. 2 P3. जो, s जो हेलइ. 7 A तियसेहिं वि. 3. 1Ps, A°रूप 4, 1 A कम्मु. 2 s दोहि . •
उत्तरकण्ड- सत्तासीमो संधि [२६१
गिरि व धीरु' जलहि व गम्भीरउ ॥ ४ उत्तम-वल-रूवेण पसण्णउ ॥ ५ वोल्लइ सम असेसहँ अमरहँ ॥ ६ लब्भइ देवत्तणु सिद्धत्तणु ॥ ७ विणिहउ णाण - समुज्जल-चक्कें ॥ ८ भविय -लोड हेलाऍ जि तारइ ॥ ९
॥ घत्ता ॥
इाहिँ सुर-र-विसहरेंहिँ तहाँ अणुदिणु रिसह भडारा हों
३ सदा.
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तियसेन्देहि अहिसेउ किउ
to इच्छहों भव- मरण-खउ ॥ १०
[३]
थि भुवण-तंय - सिहरें चडेपणु ॥ १ देव-देव महए महेसरु ॥ २ थाणु हिरण्rior तित्थङ्करु || ३ भयउ अरुहु अरहन्तु जयप्पहु ॥ ४ केवलि रु विहु हरु जग- गुरु ॥ ५ परमप्पर परमाणु परमपरु ।। ६ जग-मङ्गलु णिरवयवु सु-णिम्मलु ॥ ७
॥ घत्ता ॥
जो संव्वइ भुवण-यलें । भत्तिएँ लग्गहों पय-जुवलें ॥ ८
3 PA °.
2A अगुरुउलहुउ.
[ ४ ]
कम्म-वसेण धम्म
मुझइ चवेंवि होइवि पडिवउ णरु || ३ होइ परतें वोहि अइ- दुल्लह ॥ ४ अण्णा
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पुणु किर कहिँ लग्गइ ॥ ५
4PS एक्के. 5 Ps°रु. 6 P हेल
भमन्तु दुहारें ॥ १ वर तहि मि मोहिज्जइ ॥ २
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