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क० १८,६-१२; १९,१-१२]
उत्तरकण्डं-छायासीमो संधि [२५९ परियश्चेवि जिण-वन्दण करेवि पुणु 'दु-विहु परिग्गहु परिहोवि ॥ ६ पण्णासहिँ सत्त-सऍहिँ सहाउ खयरहँ दिक्खङ्किउ साणुराउ ॥ ७ वन्धुमइहें पासे सु-पउमराय दिक्खङ्किय पहु-सुग्गीव-जाय ॥ ८ साणङ्गकुसुम तिह खरहों धीष तिह सिरिमालिणि णल-सुय विणीय ॥९ तिह लङ्कासुन्दरि गुणहँ रासि जा परिणिय लङ्काउरिहि आसि ॥ १० । अवरउ वि मणोहर तियउ-ताव णिक्खन्तउ अट्ठ सहास जाव ॥ ११
॥घत्ता ॥ इय एकक पहाणयउ सिरिसइलहों अइ-पाण-पियारिउँ । अण्णउ पुणु किं जाणियउ जाउ तेत्थु पव्वइयउ णारिउ ॥ १२
[१९] वैत्त सुणेवि रोवइ मरु-अञ्जण 'हा हणुवन्त राम-मण-रञ्जण ॥ १ हा हा उहय-वंस-'संवद्धण हा वरुणाहिव-सुय-सय-वन्धण ॥२ हा महिन्द-माहिन्दि-परायण हा हा आसाली-विणिवायण ॥ ३ हा हा वजाउह-दरिसिय-वह लङ्कासुन्दरि-किय-पाणिग्गह ॥ ४ हा गिव्वाणरवण-वण-चूरण अक्खकुमार-सवल-मुसुमूरण ॥ ५ हा घणवाहण-रण-ओसारण हा विजा-लङ्गुल-पहारण ॥ ६ हा हा णाग-पास-वहु-तोडण हा हा रावण-मन्दिर-मोडण ॥७ हा हा लङ्का-पउलि-णिलोट्टण हा हा वज्जोयर-दलवट्टण ॥ ८ हा लक्खण-विसल्ल-मेलावण सय-वारउ जूराविय-रावण ॥ ९ अम्हहुँ विहि मि पुत्त ण कहन्तउ किह एकलउ जि णिक्खन्तउ' ॥ १० 20 एव भगोवि सुय-सोयब्भइय जिणहरु गम्पि ताई पव्वइयइँ ॥ ११
॥ घत्ता ॥ सो वि मयरद्धउ वीसमउ मारुइ घोर-वीर-तव-तत्तउ। वहु-दिवसेंहिँ केवलु लहेवि जेत्थु स य म्भु-देउ तहिँ पत्तउ ॥ १२
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2 The portion from विणीय up to तियउ (in 11 a) is missing in A. 3 P°रिय.
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०२ बाह्याभ्यन्तरः. ३ हनूमंतस्य.
[१९] 37 वृद्धिकारकः.
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