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________________ 5 २५८] सयम्भुकिङ पउमचरिउ तहिँ ताव णिच्छिय णिरु गुरुक्क सव्वों वि जहाँ सज्झसु करन्ति गह-तारा-रिक्खहिँ पह हरन्ति सावन्तरें अ-मुणिय- पमाण 10 दिवसेंहिं मण मूढहुँ आरिसाहुँ 1 ल्हिकन्तहँ गिरिवर- कन्दरे वि च - दिसहिं भवन्तहँ अम्बरे वि आएँहिँ अवरेहिं ण मुअइ मित्तु जोव्वणु वैर- कुञ्जर- कण्ण-चवलु सम्पय दप्पण छाया-समाण 1, सरयब्भय छाहि-संच्छाउ अत्थु तु मुट्ठि व णिरु णीसारु देहु चिन्तिणिय-मणें सुन्दरेण तं तिल - मित्तु वि किंपि ण वि 20 णहयलहों पडन्ति समुज्ज लुक्क ॥ ७ णं विज्जुल - लेह परिप्फुरन्ति ॥ ८ पलयाणल-जालहें अणुहरन्ति ॥ ९ 'अत्थकए णिऍवि विलीयमाण ॥ १० ॥ घन्ता ॥ एउ जाणन्तु वि पेक्खु किह इय गिरिवरें* सूरुग्गमणे चिन्तन्तों हियवऍ तासु एव उग्गमि दिवायरु हें विहाइ [ क० १६, ७-११; १७, १-९, १८, १-५ ॥ घत्ता ॥ अच्छमि छाइड मोहण - जालें । कल्ले जि' दिक्ख लेमि किं कालें ॥ ९ [१८] गय रयणि कमेण कु-बुद्धि जेव । १ पावज्ज - णिहालउ आउ णाइँ ॥ २ उच्छेवि पिय-महिला-णिहाउ सन्ताणें ठवेवि णियङ्गजाउ ॥ ३ णीसरेंवि विमाणहों अणिल-पुत्तु णर-जाणु चडिउ मणि- गण - णिउत्तु ॥ ४ 25 गउ णरवर - सहिउ जिणिन्द-भवणु चारण- रिसि लक्खि धम्मरयणु ॥ ५ 5ps 'धिद्धिगत्थु संसार- णिवासु । जासु ण दीसइ भुवर्णे विणासु ॥ ११ [ १७ ] एह जे अवत्थ अम्हारिसाहुँ ॥ १ मसहँ असिवर-पञ्जरे वि ॥ २ कन्त सायरें मन्दरे वि ॥ ३ Jain Education International w तो वरि पर- लोयहों दिष्णुं चित्तु ॥ ४ जीविउ 'तणग्ग- जल- विन्दु-तरलु ॥ ५ सिमरु - - दीव - सिहाणुमाण || ६ तिण- जलिय - जलण - समु सयण- सत्थु ॥ ७ जल-रेह व दिट्ठ-पणहु हु ॥ ८ '17. 1P लु, A ल्हु° 2 P धण्णु, S धणु. 3 P तुसे, तुसि. 4 P s°रु. गमेण, A ग्गगणे. 6 Ps omit. 18. 1Ps सुहाइ. ३ उल्कापातम्. ४ शीघ्रम्. [१७] १. ई[ह]ग्विधानाम् २ मृत्युः ३ ॥ तृणाग्र. [१८] १ सिविका. For Private & Personal Use Only ४ सदृशः. www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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