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क०९, १-१०,१०,१-१०]
उत्तरकण्डं-पंचासीमो संधि [२४७
॥ हेला ॥ एत्थन्तरे पिएवि वलएउ पइसरन्तो।
रिसह-जिणिन्द-पढम-'णन्दणहों अणुहरन्तो ॥१ णाणा-रस-सम्पुण्ण-णिरन्तरु . णायरिया-यणु चवइ परोप्परु ॥ २ 'ऍहु सो वलु णिय-भुअ-वल-वीयउ दीसइ गिम्भु जेम णिस्सीयउ ॥ ३ सोह ण पावइ उत्तम-सत्तउ णं जिण-धम्मु दया-परिचत्तउ ॥४ णं जोण्हएँ आमेलिउ ससहरु गं दित्तिएँ दूरुज्झिउ दिणयरु ॥ ५ ऍहु सो में विणिवा रावणु लक्खणु लक्खण-लक्खकिय-तणु ॥ ६ इय वेण्णि वि जण ते लवणङ्कस सीया-णन्दण करि व णिरङ्कस ॥७ तरणि-तेय णिव्वूढ-महाहव जेहिं परजिय लक्खण-राहव ॥८ ॥ ऍहु सो वज्जजङ्गु वल-सालउ पुण्डरीय-पुरवर-परिपालउ ॥ ९
॥ घत्ता ॥ ऍहु सो सत्तुहणु सत्तुहणु समरें अणिवारिउ । णन्दणु सुप्पहहें जें महु महुराहिउ मारिउ ॥ १०
[१०] ॥ हेला ॥ ऍहु सो जणय-णन्दणो जयसिरी-णिवासो ।
____ रहणेउर-पुराहिवो तिहुअणे' पयासो ॥ १ ऍहु सो सुग्गीवु 'चराहिमाणु पमयद्धय-विजाहर-पहाणु ॥२ किक्किन्ध-णराहिवु वालि-भाइ तारावइ तारा-वइ व भाइ ॥३ ऍहु सो मारुइ अक्खय-विणासु जे दिण्णु पाउ सिरे रावणासु ॥४
लङ्केसु विहीसणु विणय-वन्तु ॥ ५ ऍह सो णलु घाइउ जेण हत्थु ऍह णीलु विवाइड जें पहत्थु ॥६ ऍह सो अङ्गउ थिर-थोर-वाहु जें किउ मन्दोयरि-केस-गाह ॥७ ऍहु सो पवणञ्जउ सुहड-पवरु . परिपालइ जो आइच्च-णयरु ॥८ ऍह सो महिन्दु अञ्जणहें ताउ - मणवेय-महाएविऍ सहाउ ॥ ९ आयऊ सहि तिण्णि वि जणिउ ताउ अवराइय-कइकय -सुप्पहाउ ॥१० 9. 1 PS °वाइउ. 10. 1 Ps °ण. 2 A वि.. 3 PS ए(s य)हु सो नीलु विहउ. 4 PS सह. 5s केकय. . [९] १ भरतचक्रवर्तिनः..
[१०] १ श्रेष्ठाभिमानः. २ चन्द्र इव. ३ जनन्यो रामादीनाम्. ४ 7 लक्ष्मणजनन्या द्वे नामनी कइकइ.सुमित्रेति । भरतस्य तु कैकयेति जननी. •
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