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२४८] सयम्भुकिउ पउमचरिउ
[क० १०,११११,१-
१२,१-५
॥ घत्ता
॥
पुण्णघणहों तणय सा एह विसल्ला-सुन्दरि । सत्ति-हउँ (?) जाएँ रणे परिरक्खिउ लक्खण-केसरि' ॥ ११
[११] । ॥हेला ॥ णायरिया-यणासु आलाव एव जावं ।
लक्खण-पउमणाह राउले पट्ट तावं ॥१ सुरसरि-जउण-पवाह व सायरें ससि-दिवसयर व अत्थ-धराहरें ॥२ केसरि व्व गिरि-कुहरब्भन्तरें सहत्थ व वायरण-कहन्तरें ॥ ३ चिन्तइ वलु पिय-सोयब्भइयउपेक्खु के सीयएँ तवु लइयउ ॥४ " हउँ भत्तारु जणद्दणु देवरु जणउ जणणु भामण्डलु भायर ॥ ५ णन्दण दुइ वि एय लवणकुस । अवराइय सासु दीहाउस ॥ ६ इह महि एउ रज्जु ऍउ पट्टणु ऍउ घर ऍहु अवरु वि वर्धव-जणु ॥ ७ इय पुण्णिम-ससि-सण्णिह-छत्तइँ कह सव्वइ मि झत्ति परिचत्तई॥८
सुरवरह मि असक्कु किउ साहसु वहु-कालहों वि थविउ महियले जसु ॥९ 15 एवहिँ उन्भासिय-परिवायहों होन्तु मणोरह पैय-सङ्घायहों' ॥१०
॥ घत्ता
॥
लक्खणु चिन्तवइ सीया-गुण-गण-मण-रञ्जिउ । 'हउँ विणु जाणइऍ हुउ अजु जणेरि-विवजिउ' ॥ ११
[१२] 'तो एत्तहे वि ताव पइ-पुत्त-मोह-चत्ता . तियसं-भूइ-णिन्दिया अई-महन्त-सत्ता ॥१ जा पाउस-सिरि व्व सु-पओहर आसि तियस-जुवइहिं वि मणोहर ॥२ सा तवेण परिसोसिय जाणइ णं दिवसयरें गिम्भे महा-णइ ॥३
दुप्परिणाम दूरे परिसेसिय घेण-मलोह-कञ्चऍण विहूसिय ॥४ 3 परमागम-जुत्तिएँ किय-पारण वसिकिय पञ्चेन्द्रिय-वर-वारण ॥५
6. PS सत्तिए हउ, A सत्तिहेउ. 11. 1 Ps °णुसु. 2 8 केंव. 3 s °य, A °भ. 4 Ps इय. - 12. 14 ता.
[११] १ अस्तपर्वते. २ उद्भाषितपरिवादस्य. ३ प्रजायाः. [१२] १ सीतार्जिका. २ निबिडलमलौघा.
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