SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ ] संयम्भुकिउ पउमचरिउ क०७, २-११;4,1-10 तो मुणि अहिणन्देवि अमर-सय णिय-णिय-भवणहँ सहसत्ति गय ॥२ सीराउहो वि संचल्लु तहिँ सा अच्छइ सीयाएकि जहिँ ॥ ३ दीसइ अज्जिय-गण-परियरिय ध्रुव-तार व तारालङ्करिय॥४ णं समय-लच्छि विमलम्बरिय णं सासण-देवय अवयरिय ॥ ५ । पेक्झेवि पुणु थिउ आसण्णु वलु णं सरय-जलय-मालहें 'अचलु ॥ ६ चिन्तन्तु परिहिउ एक्कु खणु दर-वाह-भरिय-अविचल-णयणु ॥ ७ 'जा चिरु घण-रवहाँ वि तसइ मणे सोबई हिय-इच्छिय-वर-सवणे ॥ ८ सा वणयर-सद्द-भयाउलएँ वहु हीर-खुण्ट-कुस-सङ्कुलएँ ॥ ९ वर-काणणे पगुण गुणन्भहियकिह रयणि गमेसइ भय-रहिय ॥ १० ॥ घत्ता ॥ जम्पिय-यिय-वयण अणुकूल मणोज महासइ । सुह-उप्पायणिय कहिँ लब्भइ एरिस तियमइ ॥ ११ [८] 'धि मइँ कियउ असुन्दरं जगहुँ कारणेणं । । जं घल्लावियासि पिय वणे अकारणेणं' ॥१ चिन्तेंवि एव सीय अहिणन्दिय णं जिण-पडिम सुरिन्दें वन्दिय ॥२ जिंह तें तेम सुमित्तिहें जाएं तिह वर-विजाहर-सङ्घाएं ॥३ 'तुहुँ स-कियत्थ जाएँ सुपसिद्धउ जिणवर-वयणामिउ उवलद्धउ ॥ ४ जा वन्दणिय जाय णीसेसहुँ वाल-जुवाण-जरकियवेसहुँ ॥ ५ ॥ कन्त-जणेर-कुलइँ अप्पउ जणु पइँ उज्जालिउ सयलु वि तिहुयणु ॥६ पुणु णीसल्लु करेवि महव्वल जाणइ अहिणन्देवि गय हरि-चल ॥७ लवणकुस-कुमार विच्छाया णे रवि-ससहर णिप्पह जाया ॥८ गय णर-णरवरिन्द-विजाहर । सुन्दर-कडय-मउड-कुण्डल-धर ॥९ ॥ घत्ता । 25 दसरह-राय-सुय णरवर-लक्खेंहिँ परियरिय। इन्द-पडिन्द जिह तिह उज्झाउरि पइसरिय ॥ १० .. 7. 1 PS °मालाहे, A °मालेहिं. 2 Ps कुंट'. 3 A °णे. 4 PS हु, A °हुँ. 5 F S A 'हि. 8. 1 P द्धि, धिद्वि. 2 P किओ, 8 किउ. 3A °रु. 4 वयणे. 5 PS °य. 6 P A . [७] २ पर्वतः. ३ खुंटका दर्भाणि. ४ प्रकृष्टगुणेन युक्ता. [८] १ धिग् धिग्. २ प्रेतवने । रे प्रिया वने च. ३ नमस्कृता. Sam Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy