SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ०५,०-१२, ६, 1-1०,७,१]. उत्तरकण्डं-पंचासीमो संधि [२४५ किह धरणियल-सयणे सोवेसहि काणणे वियणे घोरें णिसि णिसहि ॥ ७ किह दुक्कर-उववास. करेसाई पक्खु मासु छम्मास गमेसहि' ॥८ रुक्ख-मूलें आयावणु देसहि तुहिण - कणावलि देहे धरेसहि' ॥९ तो सेणाणि भणडू 'सुह-भायणु जो छड्डुमि तुह णेह-रसायणु ॥१० जो लच्छीहरु उज्झै वि सकमि सो किं अवरइँ सहेवि ण सक्कमि ॥ ११ । ॥ घत्ता ॥ मिचु-सुराउहेंण 'देहे-इरि जाव णिहम्मई। ताव खणेण वरि अजरामर-देसहों गम्मइ ॥ १२ ॥ हेला ॥ कालेण वि णरिन्द वड्डिय-महन्त-सोउ । होसइ तुह समाणु अवरेंहिँ वि सहुँ विओउ ॥ १ तइयहुँ दुक्कर जीविउ छुट्टइ वहु-दुक्खेंहिँ महु हियवउँ फुट्टइ ॥२ . तें कजें ण वि वारिउ थक्कमि चउ-गइ-काणणे भौवि ण सक्कमि ॥३ तं णिसुणेवि वलु दुम्मण-वयणउँ वोल्लइ अंसु-जलोल्लिय-णयणउँ ॥ ४ 'तुहुँ स-कियत्थउ जो इउ वुझेंवि महु-सम सिय जर-तिणमिव उज्झवि॥५ ।। घोरु वीर तव-चरणु समिच्छहि इय जम्में जइ मोक्खु ण पेच्छहि ॥६ अवसरु परियाणेवि संखेवें सम्बोहेवउ हउँ पइँ देवें ॥ ७ जइ जाणहि उवयारु णिरुत्तउँ सम्भरेज तो ऍउ जं वुत्त' ॥८ सो विसरहसु स-विणउ पणवेप्पिणु 'एम करेमि देव' पभणेप्पिणु ॥९ ॥घत्ता॥ धन्देवि मुणि-पवर 'दिक्खहें पसाउ' पभणन्तउ । खणे कियन्तवयणु वहु-णरहिँ समउ णिक्खन्तउ ॥ १० 25 । हेला ॥ सहसा हुउ महरिसी भव-भव-सयाहँ भीउ । सीलाहरण-भूसिउ 'करयलुत्तरीउ ॥ १ 5. P रहि, s इ. 6. PS °सु 7 PS A 'हि. 8 PS A °झि. 9 s वुत्तु. 10 P सुराउहिवजेण. 11 P A "इं. 6. 1 A 3. 2 P . [५] १ वज्रेण देव (१ ह ) एवं पर्चतः. [७] १ हस्तप्रावरणम्. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy