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________________ २४२] सयम्भुकिउ पउमचरिउ इय उमचरिय-सेसे सयम्भुएवस्स कह वि उवरिए। तिहुयण -सयम्भु-रइए सपरियण - हलीस-भव-कहणं ॥ इय रामएव- चरिए वन्दई-आसिय-सयम्भु-सुअ-रइए । वुहयण-मण-सुह - जणणो चउरासीमो इमो सग्गो ॥ [८५. पंचासीनो संधि] पुणु वि विहीसणेण पुच्छिन्नइ 'मयण - वियारा । सीया-णन्दणहँ कहि जम्मन्तरइँ भडारा॥ [१] ॥ हेला ॥ तं णिसुणेवि वयणु जग-भवण-भूसणेणं । ॥ वुच्चइ मुणिवरिन्देण सयलभूसणेणं ॥१॥ 'सुणि अक्खमि परिओसिय-सुरवर जगें पसिद्धे' कायन्दी-पुरवरें ॥२ वामएव-विप्पहों विक्खायहाँ सम्मलीऍ घरिणीऍ सहायहाँ ॥ ३ सुय वसुएव-सुएव वियक्खण वियसिय विमल-जमल कमलेक्षण ॥४ ताहँ 'पियउ दुइ णिम्मल-चित्तउ विसय-पियङ्गु-णाम-संजुत्तउ ॥५ ॥ एक्कहिँ दिणे 'मयणाय-मइन्दहाँ अण्ण-दाणु सिरितिलय-मुणिन्दहों ॥६ विहि मि जणेहिँ तेहिँ गुरुऐन्तिएं(?) दिण्णु समुज्जल-अविचल-भत्तिएँ ॥७ वहु-कालें अवसाणु पवण्णा उत्तरकुरुहें गम्पि उप्पण्णा ॥८ . तहि मि तिणि पल्लइँ णिवसेप्पिणु नणे चिन्तविय भोग भुञ्जेप्पिणु ॥९ पुणु ईसाण-सगें हुअ सुरवर पलय -समुग्गय णं रवि-ससहर ॥ १० ॥ घत्ता ॥ विहिँ रयणायरेंहिँ अइकन्तेहिं सम्मय-भरिया । चवण करेवि पुणु तहे कायन्दिहें अवरारिया ॥११ 1A कव्व. 2 P S वंदे. 3 P°णे, A यणो. 1. P SA °द्वि. 2 P SA . 3 s भत्तिए. ३ मदनाग कन्दर्पगज-सिंहस्य. ४ आगते सति. [१] १ काकन्दीपुरे. २ भार्ये द्वे. ५ भोगभूमि. ६ सम्यक्त्वं सन्मतिश्च, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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