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________________ ६० २४, १–११; २५, १–९ ] तेण जुवाण भाउ पावतें सम्मत्तोरु भारु पवहन्तें णिरुणिरुवम-गुण-गण-संजुत्तें. ससहर-सणिहेण जस-वन्तें दुल्लह-तव- णिहाणु उवलद्ध बहु- संवच्छर सहसेंहिं विगऍहि. आऊरिउँ सुह-झाणु पहाण ता अवसाण-काल तहाँ आइउ एक-रण-तणु सुरवरु जायउ तर्हि तेतीस जलहि परिमाणइँ सो अमरु चवेपि एत्थहों अखलिय-पयावु सुह- दंसणु • जो णिग्गन्धु मुऍवि सामण्णहों जो णिविसन्तरें पहिमि कमेप्पिशु जेण समरे सहुँ पुष्क - विमाणें दाहिण - भुऍण भुवण - सन्तावणु पच्छऍ ससिकिरण मुएप्पिणु लइय दिक्ख भव- गहण - विरतें दिणुं सिलोवरि परमत्तावणु पुणु वि मडप्फरु भग्गु खणन्तरें • [२५] १ स्त्रियौ. पड० च० ३१ उप्पर्ण - णाणु सो मुणिवरु www झाऍवि स य म्भु भडारउ Jain Education International • उत्तरकण्ड - चउरासीमो संधि [ २४१ [ २४ ] णिय-मर्णे जइण-धम्मु भावन्ते ॥ १ दिणें दिणें जिणु ति-कालु पणवन्तें ॥ २ कन्तसोय - रयणावइ -पुतें ॥ ३ तण ते ओहामिय- रइकन्तें ॥ ४ णाणाविह-लद्धीहिं समिद्ध ॥ ५ दुन्दर - विसय-महारिहिँ हिऍहिँ ॥ ६ किर उपज्जइ केवल-णाण ॥ ७ पुणु सव्वत्थ-सिद्धि संपाइ ॥ ८ सूर- कोडि छाया - संछायउ ॥ ९ भुवि सोक्खइँ अमिय- समाणइँ ॥ १० ॥ घत्ता ॥ जाउ वालि इह खयर-पहु । चरम सरीरु समरें अइ-दूसहु ( ? ) ॥ ११ [ २५ ] ण वि जयकार करइ जगें अण्णहों ॥ १ एइ सयल - जिणहरइँ णवेष्पिणु ॥ २ अणु चन्दहासेण किवाणें ॥ ३ हेलाऍ जें उच्चाइ रावणु ॥ ४ राय लच्छि सुग्गीवहों देष्पिणु ॥ ५ गिरि - कलासु चडेवि पयते ॥ ६ 24. 1Ps. 2 P A वो. 7Ps कु. 8 A. विणु. 9A °उ. 25. 1 Ps धुव. 2 P दिन, 8 दिण्ण. 3Ps परसंतावणु. 4PSA ण्णु. जन्त रोसाविउ रावणु ॥ ७ को उवमिज्जइ तहों भुवणन्तरें ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ अट्ठ- दुट्ठ-कम्मारि - खउ । सिद्धि - खेत्त - वर णयरु गउ' ॥ ९ - * 3 p. 4A उं. For Private & Personal Use Only 5 Ps. 6PS णु. 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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